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सुखी जीवन के लिए दो अतियों से बचना; ये दो विपरीत किनारे हैं, इसलिए मध्यम मार्ग पर चलना चाहिए… | Buddha

Buddha
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Buddha : After attaining Buddhahood, Lord Buddha tells five monks in his first Dhamma sermon on the full moon day of Ashadh in Sarnath – Brothers! Avoiding these two extremes on the path of Dhamma. Both of these have a sad ending. Not beneficial for humans. There is no way to happiness, peace and nirvana.

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन: सुखी जीवन के लिए दो अतियों से बचना. ये दो विपरीत किनारे हैं. पहला, छः इंद्रियों के सुख में डूबे रहना और दूसरा, काया को अतिकष्ट देना. इसलिए मध्यम मार्ग पर चलना. (Buddha)

 

बुद्धत्व प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को अपने पहले धम्म उपदेश में कहते हैं- भाईयों! धम्मपथ पर इन दो अतियों, अंतों (extremes) से बचना. इन दोनों का अंत दुखदायी है. मनुष्य के लिए कल्याणकारी नहीं है. सुख, शांति व निर्वाण का मार्ग नहीं है.

 

पहला- छः इंद्रियों (sense organs ) के अतिसुख में आकंठ डूबे रहना. आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा एवं मन का सुख. विषय वासना का सुख. जैसे किसी के रुप में मोहित होना, स्वयं की प्रशंसा सुनकर कर अतिप्रसन्न होना, सुगंध या भोजन के स्वाद से चिपके रहना और स्पर्श सुख में पागल हो जाना, पद- प्रतिष्ठा का अहंकार आदि.(Buddha)

 

दूसरा- कुछ पाने के लिए शरीर को घोर कष्ट देना. जैसे तप के लिए उल्टे लटकना, नंगे रहना, शरीर को बिंधना या व्रत उपवास में लंबे समय तक भूखे रहना, नंगे पांव लंबी पैदल यात्रा करना आदि.

 

भगवान बुद्ध कहते है, इन दोनों प्रकार की अतियों का मार्ग ज्ञान, ध्यान, सुख शांति व निर्वाण का मार्ग नहीं है.(Buddha)

 

इन दोनों के बीच का रास्ता मनुष्य के कल्याण व निर्वाण का मार्ग है. वह है तथागत का जाना हुआ- मध्यम मार्ग. middle path. (मज्झिम पटिपदा).अरिय अष्टांगिक मार्ग. शील, समाधि, प्रज्ञा का मार्ग. यह दुखों से मुक्ति, ज्ञान, शांति व आनंद का मार्ग है. यह बुद्ध के धम्म का मार्ग है जिसका केन्द्र बिन्दु है- मनुष्य और मनुष्य का कल्याण, वह भी इसी जीवन में.(Buddha)

 

मध्यम मार्ग कहता है वीणा के तार को इतना अधिक भी मत कसो कि सुर ही नहीं निकले, टूट जाए और इतना ढ़ीला भी मत रखो कि मधुर की बजाय बेसुरा सुर निकले. इसी प्रकार अपने मन को ध्यान साधना द्वारा वश में कर मध्यम मार्ग पर रखो. संयमित रहो. काम, क्रोध, मोह, लोभ, घृणा, अहंकार जैसे विकारों से मुक्त करो. यही सुख का मार्ग है.

 

दरअसल तथागत बुद्ध ने इन दोनों अतियों को बहुत करीबी से देखा और भोगा था. राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में इंद्रियों का अतिसुख और गृहत्याग के बाद व बुद्धत्व से पहले एक सन्यासी के रूप में घोर तपस्या करते हुए शरीर को हद से ज्यादा कष्ट की अति. इसी अनुभव के बाद बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और मानव कल्याण के लिए मध्यम मार्ग को खोजा.(Buddha)

 

भवतु सब्बं मंगलं..सबका कल्याण हो..सभी प्राणी सुखी हो.(Buddha)

 

 

 

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