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राजभाषा ही राष्ट्र का स्वाभिमान है | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान 


 

भाषा मनुष्य समाज की संपत्ति है। भाषा के अभाव में मनुष्य अधूरा है। भाषा ही वाणी का माध्यम है। भाषा के बिना हमारे सारे कार्य अधूरे हैं। हमारे जीवन में स्वतंत्र चिंतन और सोच से भाषा का घनिष्ठ संबंध है।

 

हिंदी भारत की जन भाषा है। आज हिंदी को मन भाषा बनाने की आवश्यकता है। हिंदी राजभाषा है और बहुसंख्यकों की भाषा है। भले ही भारत का संविधान किसी भी हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं देता है किंतु हिंदी आज देश दुनिया के दिलों पर राज करने वाली भाषा बन चुकी है। संस्कृत की बेटी है। उसमें वह सब संभावनाएं है। जिसे आज के दौर में दुनिया को चाहिए।

 

हिंदी भाषा में वह खूबी है जो जैसे लिखी जाती है वैसे ही पढ़ी जाती है और जैसे पढ़ी जाती वैसे ही लिखी जाती है। इस प्रकार इन्हीं गुण के कारण हिंदी दुनिया की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा बनी हुई। हिंदी भाषा सहज, सरल एवं सुगम है। उसमें एक विशेष गुण है जिसने कई भाषाओं को गले लगाया है और अपने में आत्मसात किया है। पानी तेरा कैसा ? रंग जिसमे मिलाए वैसा रंग। आज हिंदी में सभी भाषाओं से ज्यादा वर्ण है। लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था “हिंदी अपने गुणों से देश की राजभाषा है।”

 

हिंदी भारत की मातृभाषा है और हम मातृभाषा से अलग होकर अपना मौलिक ज्ञान रूपी विकास से सदा दूर हो जाएंगे। एक राष्ट्र एक भाषा की तर्ज पर और स्वयं की भाषा से ही हमारी और राष्ट्र की उन्नति संभव है। ऐसा कहने वाले आजादी से पहले महान् साहित्यकार बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र थे जिन्होंने साहित्यकारों के माध्यम से एवं अपने साहित्य में खड़ी बोली के माध्यम से हिंदी की जबरदस्त वकालत की तो बाद में गांधीजी ने।

 

गांधीजी भले ही साहित्यकार नहीं थे किंतु एक पत्रकार और राजनीति की जरूर थे। गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि “भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।”महात्मा गांधी ने अपनी विरासत में गुजराती भाषा को प्राप्त कर तथा उच्च शिक्षा अंग्रेजी में प्राप्त कर एवं अपनी जीवनी गुजराती में लिखने के बावजूद उन्होंने अच्छी तरह समझा और हिंदी को जन आंदोलन बनाया। उन्होंने स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा से अर्थात् हिंदी से देश को जगाया था।

 

आजादी के बाद संविधान में राजभाषा को लेकर काफी विवाद और बहस की स्थिति बनी रही। भारत के संविधान में अनुच्छेद 343 (एक) में कहा गया कि -“संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।” और अनुच्छेद 343(दो) मैं केवल 15 वर्षों तक अर्थात 1965 तक हिंदी के साथ अंग्रेजी को भी हिंदी के साथ राजभाषा का दर्जा दिया गया था ताकि 15 वर्ष में हिंदी गैर हिंदीभाषी राज्यों में प्रचार-प्रसार हो सके। किंतु 1967 में संसद में भाषा संशोधन विधेयक के जरिए राजकाज में हिंदी को अनिवार्य कर दिया गया, यह हिंदी के साथ बड़ा अन्याय हुआ। जिसका खामियाजा हिंदी आज तक भुगत रही है। भले ही भारत सरकार का गृह मंत्रालय प्रति वर्ष हिंदी के प्रचार-प्रसार में बहुत ही धनराशि खर्च करता है। किंतु उच्च शिक्षा में जिस गति से बदलाव लाना था वह नहीं ला सका यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

 

आज भी हिंदी संवैधानिक रूप से राजभाषा नहीं बन पाई है। जबकि देश में हिंदी बोलने वालों की संख्या 80% है। दुनिया में 80 करोड़ से ज्यादा हिंदी बोली जाती है 150 देशों के 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है और दुनिया में हिंदी को मातृभाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या 258 मिलियन से भी अधिक है। 2016 में डिजिटल के माध्यम से हिंदी में समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 कोरोड़ थी जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

 

हिंदी को विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार विश्व की 10 शक्तिशाली भाषाओं में प्रमुख माना गया है।भारतीय संविधान के अनुसार हमारे देश में 22 भाषाएं 10 लिपियां तथा 1965 बोलियां है। उनमें प्रमुख हिंदी भाषा है। भारत के अलावा 176 देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। अमेरिका में लगभग 150 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है।

 

भारत में 140 करोड़ लोगों में मात्र 4% लोग ही अंग्रेजी बोलते हैं। बावजूद हिंदी हमारे राष्ट्र की राजभाषा संवैधानिक रूप से नहीं बन पा रही है? वर्तमान में 6 भाषा ही संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा है। अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, रूसी, चीनी और अरबी। इन भाषाओं में हमारी भाषा क्यों नहीं जुड़ पा रही है? यह विचारणीय प्रश्न है।

 

ईरान ने अपनी राष्ट्रीय भाषा फारसी को देश की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम को 5 वर्ष की योजना बनाकर फारसी में अनुवाद कर मेडिकल, इंजीनियरिंग एवं तकनीकी पढ़ाई को लागू कर दिया इस प्रकार भारत क्यों नहीं कर सकता है ? कुछ लोगों को गलत अंदाजा है कि अंग्रेजी के बिना तकनीकी, कानूनी एवं चिकित्सा की पढ़ाई कैसे संभव है? किंतु क्या रूस, जर्मन, जापान, चीन, इजरायल जैसे देश अपनी ही राजभाषा में शिक्षा नहीं दे रहे हैं?

 

हिंदी उपन्यासकार बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यास “चंद्रकांता” को पढ़ने हेतु गैर हिंदी लोग जब हिंदी सीखने लगे तो आज अपने विकास के लिए, देश की एकता के लिए चंद लोग हिंदी क्यों नहीं बोल सकते हैं? महारानी विक्टोरिया ने भारत आने से पूर्व हिंदी सीखने के लिए भारत से एक हिंदी शिक्षक को बुलाया था।18 वीं शताब्दी के नौवें दशक में फोर्ट विलियम कॉलेज के प्राचार्य गिलक्रिस्ट ने अपने कॉलेज में अंग्रेजी के स्टाफ के लिए हिंदी परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया था।हेनरी पिन कोट ने प्रयास करके 19वीं शताब्दी के नौवें दशक में प्रत्येक आईएएस अधिकारी के लिए हिंदी परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया था।

 

हांगकांग और सिंगापुर ब्रिटिश के अधिकार में है किंतु वहां के निवासी अंग्रेजी नहीं जानते हैं और कुछ लोग जानते भी हैं फिर भी अंग्रेजी का प्रयोग नहीं के बराबर करते हैं।

 

महामानव गौतम बुद्ध ने आम जनता की भाषा पाली में उपदेश देकर एक नए धर्म का सूत्रपात किया था।  भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने कहा था -“भारत में विज्ञान मातृभाषा के जरिए पढ़ाया गया होता तो आज भारत दुनिया के अग्रगण्य देशों में होता।”

 

राजभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 में 14 सितंबर का दिन हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आज हमें 365 दिनों में हिंदी दिवस 1 दिन मनाने और 364 दिन हिंदी कार्य करने की, हिंदी का विकास करने की गंभीर आवश्यकता है केवल 1 दिन को हिंदी दिवस मना कर खुश होने की जरूरत नहीं है। आज हमें यह भी जरूरत है कि हिंदी का ज्ञान कोष को, हिंदी की गुणवत्ता को बढ़ाना है न कि शब्दकोश को और हिंगलिश के प्रयोग को।

 

आज विडंबना इस बात की है कि देश के कुछ चातुर्य लोग हिंदी भाषा को साधन बना रहे साध्य नहीं। अपना उल्लू सीधा होने पर अंग्रेजी में “डिंग-डांग” करने लगते हैं। जबकि हिंदी विश्व के बाजार में अपना लोहा मनवा चुकी है। अमेजॉन, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, ओएलएक्स, क्विकर आदी ई-कॉमर्स कंपनियां हिंदी जानने वाले ग्राहकों तक अपने ऐप के माध्यम से पहुंच चुकी है और अपनी बेहतरीन जगह बना ली है। अब तो अंग्रेजी वाले व्यापारी भी कहने लगे हैं -“अंग्रेजी नहीं प्रतिभा परखिए।”  फिल्म जगत में, मीडिया जगत में, हिंदी की धूम है।

 

हिंदी ने अपना इंटरनेट पर बड़ी जबरदस्त धूम मचाई। गूगल का मानना है कि हिंदी प्रतिवर्ष 94% की वृद्धि से बढ़ रही है और अंग्रेजी 17% से घट रही है। इकोनॉमिक्स टाइम्स बिजनेस स्टैंडर्ड जैसे अखबार अंग्रेजी से हिंदी में प्रकाशित होने लगे हैं। कई सारे टीवी चैनल भी हिंदी में कार्य करने लगे हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम से एमबीए का पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जा चुका है। फिर देश को सोचने की क्या जरूरत है!

 

महात्मा गांधी ने तो 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राजभाषा बनाने की बात कही थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 11 विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन कर भी हिंदी को दरकिनार क्यों किया जा रहा है? आज हिंदी विश्व की बोली और समझी जाने वाली प्रथम भाषा का स्थान पा चुकी है।

 

आज हमें हमारी हिंदी भाषा को ज्ञान विज्ञान की भाषा बनाकर दुनिया के सामने मजबूती के साथ खड़े करने की आवश्यकता है। हिंदी में मौलिकता के विस्तार लाने की आवश्यकता है। हिंदी की लकीर को बढ़ाने की आवश्यकता है। शुद्धता और परिष्कृत करने की आवश्यकता है। सहज, सरल एवं सुगम बनाने की आवश्यकता है और अपनी मातृभाषा को जन -जन तक पहुंचा कर आत्मसात और गले लगाने की आवश्यकता है। तभी कन्हैया लाल सेठिया का यह कथन भी सही साबित हो सकेगा-

“मायड़ भाषा बोलतां जणने आवे लाज ।

आस्या कपुता सुं दु:खी सगळो देश समाज।।

 

तभी हमें अपनी भाषा से सुख, शांति मिल सकती है। विदेशी भाषा से कभी नहीं। अपनी भाषा से ही आत्मसम्मान, अपनत्व, मैत्री भाव, सूसंवाद मिल सकता है। लोक साहित्य और संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान एवं कला को मजबूती मिल सकती है। हम सब संकल्प लें आदर्श भाषा से आदर्श राष्ट्र का निर्माण संभव है।


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