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आधुनिक भारत के निर्माता भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर…

Rajesh Kumar Buddh,
राजेश कुमार बौद्ध

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय- संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश


 

धुनिक भारत के निर्माता, युगपरिवर्तक, सिंबल ऑफ नॉलेज, बोधिसत्व, डॉ बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के मऊ में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उनके पिता सूबेदार के पद पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे। वे मूलतः आंबडवे, रत्नागिरी, महाराष्ट्र के थे। (Bhimrao Ambedkar)

 

बाबा साहब अम्बेडकर ने दुनियां की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज से डॉक्टरेट की डिग्रियां हासिल की थी, वे जीवन भर विद्यार्थी बनकर पढ़ते रहे और लिखते रहे। उन्होंने तथागत बुद्ध, सन्त कबीर और महात्मा ज्योतिबा फुले तीनों को अपना गुरु माना। अपने जमाने के तथाकथित साधु-संतों से वे दूर ही रहते थे लेकिन ‘सन्त गाडगे बाबा’ जो कि कबीर रैदास तुकाराम की परम्परा के सन्त थे उनका वे बहुत सम्मान करते थे। सन्त गाडगे बाबा भी प्रवचनों में अपने अनुयायियों से कहते थे कि यदि तुम्हें साक्षात भगवान को देखना है तो डॉ अम्बेडकर वंचितों के लिए वास्तविक साक्षात भगवान हैं।(Bhimrao Ambedkar)

Bhimrao Ambedkar

बाबा साहब अम्बेडकर का मानना था कि हमारे देश में दोहरी गुलामी है, अंग्रेजों के गुलाम सवर्ण हैं तो सवर्णों के गुलाम शूद्र/अतिशूद्र हैं, यदि देश अंग्रेजों से आजाद हो भी जाता हैं तो यह केवल सवर्णों की आजादी होगी। ऐसे में बाबा साहब देश की आजादी तो चाहते थे लेकिन उस आजादी में शूद्र/अतिशूद्र/स्त्री के अधिकार पहले सुनिश्चित होने चाहिए इसलिए उनका संघर्ष का मुख्य केंद्र सोसल जस्टिस और जेंडर जस्टिस था। फलस्वरूप उन्होंने भारतीय संविधान और हिन्दू कोड बिल के माध्यम से सोसल जस्टिस और जेंडर जस्टिस दिलवाकर देश की तश्वीर को बदल दिया। यही वजह है कि आज उन्हें सही मायने में आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है।(Bhimrao Ambedkar)

 

बाबा साहब अम्बेडकर ने अपनी विद्वता का देश हित में भरपूर सदुपयोग किया। उन्होंने विषमतावादी सनातन व्यवस्था को पूरी तरह आपराधिक घोषित कर दिया और संविधान के माध्यम से कानूनन समतावादी लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित कर दिया। लेकिन देश के नागरिक के व्यवहार में वर्ण और जाति की विषमता विधमान होने की वजह से लोकतांत्रिक व्यवस्था आज भी एक पेपर प्लान से ज्यादा कुछ नही है। बाबा साहब का भी यह मानना था कि संविधान केवल कानूनी परिवर्तन है व्यवहारिक परिवर्तन नही है। इसलिए व्यवहारिक परिवर्तन के लिए सांस्कृतिक क्षेत्र में बहुत कुछ करना बाकि है। (Bhimrao Ambedkar)

 

बाबा साहब अम्बेडकर का अगला कदम बुद्ध धम्म की शिक्षाओं के माध्यम से लोगों का व्यवहारिक परिवर्तन करना था लेकिन धम्म दीक्षा के दो माह पश्चात ही उनका 6 दिसम्बर, 1956 को परिनिर्वाण हो गया। समय अभाव की वजह से उनका यह व्यवहारिक परिवर्तन का मिशन अधूरा रह गया।

 

जैसे जैसे लोग उन्हें पढ़कर समझ रहे हैं उनके अनुयायियों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। उनके अनुयायी इस अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए कटिबद्ध हैं। बाबा साहब अम्बेडकर अपने अनुयायियों के लिए आज सामाजिक आर्थिक राजनीतिक दार्शनिक हर क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत और प्रासंगिक बने हुए हैं। (Bhimrao Ambedkar)

 

” बाबा साहब अम्बेडकर और बहुजन मिशन “

 

महात्मा ज्योतिबा फुले नें 1848 में बहुजन आंदोलन की नींव रखी, जिसे शाहूजी महाराज ने आगे बढ़ाते हुए बाबा साहब अम्बेडकर के मजबूत हाथों में सौंप दिया, उन्होंने इस मिशन को अंतिम लक्ष्य तक पहुँचाकर देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित किया।

 

बहुजन आंदोलन के इस क्रम में पहले हम उन तीन कार्यों को समझ लेते हैं जिन्हें बाबा साहब अम्बेडकर पूरा कर चुके हैं इसके बाद उन तीन कार्यों को समझेंगे जिन्हें बाबा साहब अधूरा छोड़ गए। जिन कार्यों को बाबा साहब अम्बेडकर समय अभाव के कारण अधूरा छोड़ गए थे। बहुजन मिशन को चलाने वाले लोगों का पूरा ध्यान उन्ही कार्यों पर केंद्रित होना चाहिए।

 

तीन कार्य जिन्हें बाबा साहब पूरा कर गये

 

विषमतावादी व्यवस्था को खत्म किया

 

मनुस्मृति की जन्म आधारित पितृसत्तामक चतुरवर्णीय विषमतावादी व्यवस्था के अनुसार शूद्र/स्त्री को शिक्षा सत्ता सम्पत्ति सम्मान का अधिकार नही था। जिसकी वजह से इनके साथ शदियों से अमानवीय व्यवहार हो रहा था। इस मनुस्मृति नामक संविधान का बाबा साहब अम्बेडकर ने 25 दिसम्बर, 1927 को खुले आम दहन किया। और मनुस्मृति की जगह एक ऐसे संविधान का सपना सजाकर अपने मिशन में जुट गए जिसके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं।

 

समतावादी व्यवस्था को स्थापित किया

 

आखिर एक लंबे संघर्ष के बाद बाबा साहब अम्बेडकर को वह मौका मिल ही गया जिसके द्वारा उन्होंने एक ऐसे संविधान की रचना की जिसके अनुसार सभी को समता स्वतंत्रता बन्धुता न्याय का अधिकार मिला तथा अवसर की समानता और अन्याय के खिलाफ विरोध करने का अधिकार मिला। अर्थात योग्यता आधारित लोकतांत्रिक चतुरवर्गीय समतावादी व्यवस्था को भारतीय संविधान के माध्यम से 26 जनवरी, 1950 से लागू किया गया।

 

धर्म परिवर्तन किया

 

बाबा साहब अम्बेडकर भली भांति जानते थे कि संवैधानिक व्यवस्था केवल शूद्र/अतिशूद्र जातियों को राजनैतिक और आर्थिक हैसियत ऊंचा करने की अनुमति देती है लेकिन इनकी सामाजिक हैसियत धार्मिक व्यवस्था तय करती है। जिसका संवैधानिक भारत में सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, यूपी है, जो संवैधानिक व्यवस्था की वजह से मुख्यमंत्री (राजा) तो बन गए लेकिन पद से हटने के बाद उनकी धार्मिक हैसियत (शूद्र) के अनुसार उनके कार्यालय और आवास का शुद्धिकरण किया गया। बाबा सहाब अम्बेडकर इस बात को जानते थे कि जब तक शूद्र/अतिशूद्र जातियां हिन्दू बनकर रहेंगी इनका अपमान होता रहेगा। बाबा साहब ने सभी को अपील करते हुए कि जिन्हें अपने आत्मसम्मान की रक्षा करनी है वे हिन्दू धर्म त्यागकर मेरे साथ 14 अक्टूबर, 1956 को अपना धर्म परिवर्तन कर सकते हैं।

 

तीन कार्य जिन्हें बाबा साहब अधूरा छोड़ गए

 

जाति का विनाश

 

शूद्र/अतिशूद्र समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातीय भावना है जो इन्हें संघठित नही होने देती परिणामस्वरूप अल्प संख्यक सवर्ण इन पर अत्याचार करते हुए शदियों से राज कर रहा है। बहुत सारे समतावादी महापुरुषों ने जाति खत्म करने का आंदोलन चलाया लेकिन जाति है कि जाती नही।

 

ब्राह्मणों ने जिस जाति को आधार बनाकर शूद्र/अतिशूद्र को अधिकार वंचित किया बाबा साहब अम्बेडकर ने उसी जाति को आधार बनाकर उन्हें SC ST OBC में सूचीबद्ध किया। फिर इन्हें तीन वर्गीय पहचान देकर आरक्षण का अधिकार दिया। फिर तीनों वर्गों को बैकवर्ड का पहचान दिया। जातियों के इस सूचीबद्ध वर्गीकरण के पीछे आरक्षण से ज्यादा बाबा साहब की व्यूहरचना शूद्र/अतिशूद्र जातियों को संघठित करना था। ताकि जातियों में बंटा हुआ शूद्र/अतिशूद्र समाज राजनैतिक तौर पर वर्गीय ध्रुवीकरण कर सत्ता पर कब्जा कर सके।

 

सत्ता करती जमात

 

बाबा साहब जानते थे कि भलेही भारतीय संविधान सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के सिद्धांत पर आधारित है लेकिन जो सवर्ण जन्म आधारित चतुरवर्णीय व्यवस्था के विशेषाधिकार से शदियों से लाभार्थी रहा है वह इस संविधान को स्वीकार नही करेगा। यदि उसके हाथ में सत्ता की बागडोर रहेगी तो वह मनुस्मृति के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा। इसलिए बाबा साहब की चाहत थी कि शूद्र/अतिशूद्र समाज के हाथों में सत्ता की बागडोर आनी चाहिए। मगर यह तभी सम्भव है जब शूद्र/अतिशूद्र जातियां संगठित होकर एक जमात में परिवर्तित हों। फिर यह जमात अपने बहुसंख्यक वोट की ताकत से सत्ता में पहुँचेगी। अंततः लोकतंत्र में विस्वास रखने वाले ओबीसी एससी एसटी ही संविधान की मूल भावना के अनुरूप सर्व समाज को समान अवसर देकर देश की प्रगति को सुनिश्चित करेंगे। इसलिए बाबा साहब अम्बेडकर जातियों को जोड़कर जमात का निर्माण करना चाहते थे।

 

प्रबुद्ध भारत का निर्माण

 

देश का इतिहास बहुजन श्रमण संस्कृति और सनातन ब्राह्मण संस्कृति की क्रांति और प्रतिक्रांति का रहा है। बाबा साहब की चाहत थी कि बुद्ध और सम्राट अशोक की बहुजन श्रमण संस्कृति को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए। जो हमारे पुरखों की मूल संस्कृति रही है, जो तार्किक, वैज्ञानिक और मानवतावादी संस्कृति है। जिसे स्थापित करने के लिए हमें प्रतीकात्मक दार्शनिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्टभूमि तैयार करनी होगी जिसे बाबा साहब अम्बेडकर ने ” प्रबुद्ध भारत ” के रूप में चिन्हित किया है। अर्थात ऐसा भारत जिसका हर नागरिक तार्किक, वैज्ञानिक और लोकतांत्रिक सोच का हो।

 

निष्कर्ष ” के तौर पर यदि हम बाबा साहब के संघर्ष की व्याख्या करें तो उन्होंने पहला जन्म आधारित पितृसत्तात्मक चतुर्वरणीय विषमतावादी व्यवस्था को खत्म किया, दूसरा योग्यता आधारित लोकतांत्रिक चतुरवर्गीय समतावादी व्यवथा को स्थापित किया तीसरा ” हिन्दू धर्म में ऊंच- नीच, ब्राह्मण के आगे सारे नीच ” बुद्ध धम्म की दीक्षा लेकर शूद्र/अतिशूद्र के लिए नीचता से छुटकारा पाने का रास्ता खोल दिया ताकि बहुजन श्रमण संस्कृति को पुनर्स्थापित किया जा सके। अर्थात इन तीन कार्यों को पूर्ण किया। लेकिन जाति का विनाश, सत्ता करती जमात और प्रबुद्ध भारत का निर्माण अर्थात समय अभाव के कारण इन तीन कार्यों को अपने अनुयायियों के भरोसे अधूरा छोड़ गए। बाबा साहब के बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें महिमा मण्डित तो बहुत किया लेकिन उनके अधूरे कार्यों पर किसी का ध्यान नही गया।

 

1848 में ज्योतिबा फूले द्वारा शुरू किया गया यह मिशन 1956 में बाबा साहब के परिनिर्वाण के साथ 108 साल तक निरन्तर चलते हुए दम तोड़ गया। बाबा साहब का सक्षम उत्तराधिकारी ना होने की वजह से 30 वर्ष लंबे अंतराल के बाद मा कांसीराम राम जी ने इस मिशन को जीरो से पुनर्जीवित किया।

 

 

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