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Congress defeat in Chhattisgarh: छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार के 11 बड़े कारण…

Editorial : Congress defeat in Chhattisgarh.

 

 

Congress defeat in Chhattisgarh : पिछले दिनों हुए चार राज्यों के चुनाव में बड़े राज्य राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। एकमात्र तेलंगाना में उसे जीत हासिल हुई। राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार एक सामान्य बात थी। लोगों को इसका अंदाजा था। लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से कांग्रेस 71 सीट से 35 सीट में आकर सिमट गई यह अप्रत्याशित था। भारतीय जनता पार्टी वाले स्वयं यह मान कर चल रहे थे कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनेगी। लेकिन रिजल्ट आने के बाद सभी आवाक रह गए। क्योंकि भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ी संस्कृति और छत्तीसगढ़िया वाद को लेकर बहुत काम किया था।

 

वैसे जब कोई हारता है तो उसके गुण, अवगुण में बदल जाते हैं और जब कोई जीतता है तो उसकी बुराइयां भी अच्छाइयां बन जाती है। और लोग उसकी तारीफें करने लगते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में हुई अप्रत्याशित हार को लेकर बात करना जरूरी है। आखिर जनता के मन में ऐसा क्या चल रहा था की कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश वोट में परिवर्तित हो गया। आखिर क्या वह वजह थी? जिसके कारण कांग्रेस बुरी तरह हार गई। आइए हम इस पर बातचीत करते हैं।

 

पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में छत्तीसगढ़ की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं- नेताओं के दुर्व्यवहार, उनकी योजनाओं, वंचितों की उपेक्षा से तंग आकर कांग्रेस पार्टी को भारी जीत दिलाकर एक मौका दिया था। लेकिन कांग्रेस पार्टी से जनता का भरोसा बहुत जल्दी उठ गया। (Congress defeat in Chhattisgarh)

 

1) विकास योजनाओं को भूलकर सॉफ्ट हिंदुत्व को साधने की कोशिश- 

 

कांग्रेस कि ये सबसे बड़ी भूल थी। कांग्रेस ने यह सोचा कि आम जनता को विकास की योजनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। सत्ता में बने रहने के लिए हिंदुत्व को साधना ही काफी है। और भूपेश बघेल ने जनता के पैसे को राम गमन पथ, कौशल्या माता मंदिर आदि धार्मिक कार्यों में लगाना शुरू कर दिया। इससे जनता नाराज हो गई और उन्होंने यह कहा कि अगर हिंदुत्व की बात है तो भाजपा; कांग्रेस से 20 है। कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग शुरू से असफल साबित होता रहा है।

 

2) धान का समर्थन मूल्य और कर्ज माफी- 

 

पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत का मुख्य कारण यही समझा जा रहा था कि किसानों की कर्ज माफी और उनका समर्थन मूल्य जो कांग्रेस सरकार के द्वारा दिया गया। उसके कारण भारी जीत हासिल हुई। लेकिन इस बार जनता ने कर्ज माफी और समर्थन मूल्य को ठोकर देते हुए भाजपा को चुना। यही नहीं भारतीय जनता पार्टी के विधायक काफी मतों के अंतर से चुनाव जीत गए। क्‍योंकि बाकी बहुत सारे मामले में जनता सरकार से नाराज थी।

 

3) कर्मचारियों की नाराजगी- 

 

ज्यादातर सरकार कर्मचारियों को हल्के में लेती है जबकि सरकार कर्मचारियों के पांव के सहारे ही चलती है। सारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करना और उसे सफल बनाने का श्रेय कर्मचारियों को ही जाता है। पिछले 5 सालों के शासनकाल में जितना कर्मचारियों को सताया गया; उतना कभी नहीं हुआ। पांचवें वर्ष कर्मचारियों ने भूपेश बघेल से उसके वादे को निभाने के लिए निवेदन किया। लेकिन वे राजी नहीं हुए। हड़ताल किया गया जिसमें भूपेश सरकार के द्वारा स्‍वास्‍थ विभाग एवं पटवारियों पर एस्मा लगाया गया। लोगों को बर्खास्त किया गया। फेडरेशन की हड़ताल एक माह चली जिसका कोई भी निर्णय सरकार के द्वारा नहीं लिया गया। महंगाई भत्ते के लिए कर्मचारियों को देश के इतिहास में पहली बार हड़ताल करना पड़ा जो कि हर सरकार द्वारा बिना मांगे दे दिया जाता था। वह भी भूपेश सरकार ने नहीं दिया। चुनाव की घोषणा होने के पहले दिया भी तो एक साल का एरियस सरकार खुद खा गई। कर्मचारियों को नहीं दिया। संविदा व राज्‍य अतिथि शिक्षकों को नियमितीकरण का वादा नहीं निभाया। कैशलेश चिकित्‍सा घोषणा करने उपरांत भी लागू नहीं किया गया। दैनिक वेतन भोगी वर्ग को नियमित करने का वादा नहीं निभाया गया। इस कारण कर्मचारियों, अधिकारियों का गुस्सा, जो कि वोट में परिवर्तित हो गया। (Congress defeat in Chhattisgarh)

 

4) मुख्यमंत्री की अनुपलब्धता- 

 

पिछले भारतीय जनता पार्टी के 15 साल के शासन में रमन सिंह हर गुरुवार को अपने निवास पर आम जनता से मिला करते थे। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलना कठिन था। खुद उनके करीबी लोग बताते हैं कि भूपेश बघेल से मुलाकात संभव नहीं है। आम जनता की बात तो दूर है। इस कारण भूपेश बघेल अपने चंद अधिकारियों और चापलूसों से घिर गए। जनता की परेशानियां, मजबूरियों की जानकारी उन्हें नहीं मिल पाई।

 

5) आम जनता को गोमूत्र; गोबर में फंसाए रखना- 

 

आम जनता को गोबर गोमूत्र खरीदी मे लगा दिया गया। सरकारी मिशनरियों द्वारा जबरदस्ती इसे लागू करने का प्रयास किया गया। इसके कारण आम जनता में सरकार की छवि धूमिल हुई। फर्जी लाभार्थियों को सामने लाया गया और आम जनता में यह इंप्रेशन गया कि यह सरकार छत्तीसगढ़ के युवकों को रोजगार देना नहीं चाहती है। गोबर गोमूत्र खरीदी में फंसा के रखना चाहती है। इससे छत्तीसगढ़ की आम जनता नाराज हो गई।

 

6) नरवा, गुरूवा, घुरवा, बाड़ी- 

 

भूपेश बघेल की यह एक महत्वाकांक्षी योजना थी जिसका चारों ओर प्रशंसा भी हुई। लेकिन इसे इंप्लीमेंट करने में 5 साल काफी नहीं थे।

 

7) कांग्रेस पार्टी में आर एस एस की उपस्थिति-

 

कांग्रेस पार्टी में कई विधायक नेता ऐसे थे जो की कांग्रेस पार्टी की सदस्यता तो लिए हुए थे लेकिन भीतर से वे वही कट्टर हिंदुवाद को प्रसारित करते थे। खुद राहुल गांधी का मजाक उड़ाते थे। इससे पता चलता है कि कांग्रेस में अनुशासन की कमी है तथा उनके कार्यकर्ताओं नेताओं के कैरेक्टर की जानकारी कांग्रेस को नहीं है। भीतरघात ने कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचा।

 

8) अपने सिद्धांतों से समझौता- 

 

अपने सिद्धांतों से समझौता करना कांग्रेस को भारी पड़ा। कांग्रेस अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों को लेकर चलने वाली पार्टी के रूप में उसकी पहचान है। ठीक इसी प्रकार कांग्रेस की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी के रूप में भी है। कांग्रेस ने अपनी इस पहचान को पूरी तरह नष्ट कर दिया। अव्वल तो यह कि उसने मंत्रिमंडल के गठन में उनकी उपेक्षा की। नए लोगों को मौका नहीं दिया। धर्मनिरपेक्ष होने के बजाय कमल विहार का नाम बदलने, रामगमन पथ बनाने, गेड़ी चढ़ने, बासी खाने में भूपेश अपना वक्त जाया करते रहे। इस कारण ऐसे लोग जो कांग्रेस को हमेशा वोट देते रहे, उन्हें हराने की मुहिम में लग गए। यदि राहुल गांधी को छोड़ दे तो कांग्रेस के सिध्‍दांतों को कोई पालन करता नहीं दिखता है।

9) व्यापारियों की अपेक्षा- 

 

प्रदेश का व्यापारी वर्ग भूपेश बघेल से खासा नाराज था। व्यापार और इंडस्ट्री को लेकर कोई योजनाएं भूपेश बघेल के पास नहीं थी। जो सब्सिडरीयां दी जाती थी व्यापारियों का कहना है कि उसे भी खत्म कर दी गई। व्यापारियों को लगता था कि सारा पैसा विकास के बजाय ऋण माफी और धन के समर्थन मूल्य में दिया जा रहा है। इस कारण वे भूपेश सरकार से भीतर ही भीतर काफी नाराज थे। कांग्रेस समर्थित व्‍यापारियों को भी कोई काम नहीं मिल रहा था। सरकारी कार्यों में भाजपा समर्थित व्यापारियों का ही बोल बाला था।

 

10) धर्मनिरपेक्ष संस्थाएं- 

 

2018 के चुनाव में जिन संस्थाओं ने भूपेश को जीत हासिल करने में वैचारिक रूप से मदद की थी। इन संस्थाओं को सरकार बनने के बाद में भूपेश ने पहचानने से भी इंकार कर दिया। नाम न छापने की शर्त में ऐसे ही एक संस्था के सदस्य कहते हैं की विरोधी विचारधारा होने के बावजूद पूर्व की सरकार उन्हें प्रतिवर्ष आर्थिक मदद किया करते थे। लेकिन कांग्रेस की सरकार आने के बाद वह मदद भी खत्म हो गई। इसके कारण धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लोग और संगठन भूपेश बघेल के इस उपेक्षा पूर्ण रवैया से परेशान और नाराज थे। (Congress defeat in Chhattisgarh)

 

11) सरकार में आरएसएस के कर्मचारियों की मौजूदगी- 

 

यह बेहद महत्वपूर्ण कारण है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार में यह खूबी होती है कि वह अपने विचारधारा के कर्मचारियों और अधिकारियों को उनके चाह के अनुसार या जरूरत की मुताबिक मेंस्ट्रीम में सेट करती है। ट्रांसफर करती है; प्रमोशन देती है। लेकिन भूपेश की सरकार ने उन RSS से संबंधित कर्मचारियों अधिकारियों को नहीं छेड़ा। न ही कांग्रेस विचारधारा के अधिकारी कर्मचारियों को जिन्होंने सरकार बनाने के लिए मदद की थी; उन्हें सेट किया। वे जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी की सरकार में पीड़ित थे वैसे ही वह कांग्रेस सरकार में भी पीड़ित रहे। कांग्रेस को यह सीखना चाहिए। उन भाजपा समर्थित कर्मचारियों अधिकारियों ने कांग्रेस को पूरा नुकसान पहुंचाया।

 

काश कांग्रेस अपनी गलतियों से सीखती; सिध्‍दांतो पर कायम रहती तो उसे इस तरह हार का मुंह नहीं देखना पड़ता।

 

 

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