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राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ : क्या कहते हैं इसके चार दहाड़ते शेर, हाथी, बैल, घोड़ा, चक्र और कमल ? | Ashok Stambh

Ambedkar
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Ashok Stambh : The meaning of the national symbol Ashoka Pillar is very deep. What are its four roaring lions, elephants, bulls, horses, wheels and lotuses called? राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ का अर्थ बहुत गहरा है. क्या कहते हैं इसके चार दहाड़ते शेर, हाथी, बैल, घोड़ा, चक्र और कमल ?

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : सम्राट अशोक ने सारनाथ में 45 फीट लंबे बलुआ पत्थर (sand stone) के स्तंभ के टॉप पर जो चिन्ह बनवाया था, वही आज देश का गौरवशाली राष्ट्रीय चिन्ह है. चार दिशाओं में सौम्य भाव से दहाड़ते हुए शेर, तथागत बुद्ध का प्रतीक है.

 

‘सिंह’ को बुद्ध का पर्याय माना जाता है. बुद्ध के सौ नामों में से शाक्य- सिंह और नर- सिंह भी है. (Ashok Stambh)

 

सारनाथ (मृग-दाव ), वाराणसी में बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा को पांच भिक्षुओं को पहला धम्म उपदेश दिया था, उसे ‘सिंह गर्जना’ भी कहते हैं. उपदेश के बाद साठ भिक्षुओं को बुद्ध ने आदेश दिया कि वे एक जगह इकट्ठे होने की बजाय चारों दिशाओं में जाकर बहु-जनों के हित में अर्थात ज्यादा से ज्यादा लोगों के सुख के लिए, लोगों पर अनुकम्पा करते हुए धम्म का प्रसार करें. (Ashok Stambh)

 

स्वयं बुद्ध ने भी 45 साल तक लगातार सिंह की तरह गर्जना करते हुए चारों दिशाओं में सत्य ज्ञान का प्रचार किया.यह चारों सिंह उसी का प्रतीक है.

Ashok Stambh

इनके नीचे ‘धम्मचक्र’ बना हुआ है जो पहले उपदेश ‘धम्मचक्क पवत्तन’ का सार- शील, समाधि व प्रज्ञा का प्रतीक है और यही हमारे तिरंगे के बीच में सुशोभित है.(Ashok Stambh)

 

चक्र के पास बना ‘हाथी’ भगवान बुद्ध की गर्भावस्था का प्रतीक है. ‘बैल’ उनके जन्म से लेकर गृह त्याग और ‘घोड़ा’ गृह त्याग से लेकर बुद्धत्व प्राप्ति के छ: साल का प्रतीक है.

 

इनके नीचे कमल का उल्टा फूल बना है. यह सिद्धार्थ का प्रिय फूल है. बुद्ध ने कीचड़ में कमल की तरह खिल कर शुद्ध व सार्थक जीवन जिया.(Ashok Stambh)

 

अशोक स्तम्भ का यह ऊपरी बहुत ही चमकीला भाग सारनाथ के म्यूजियम में सुरक्षित हैं जो जिज्ञासु अंग्रेज अफसरों द्वारा की गई खुदाई में टूटा हुआ मिला था. इसकी पॉलिश आज भी एक रहस्य है. मूल स्तम्भ में इन चार शेरों के ऊपर एक बड़ा चक्र भी था जिसमें 32 तिलियां थी, जो बुद्ध के शरीर के 32 लक्षणों का प्रतीक थी.

 

11वीं सदी तक धम्म व श्रमण संस्कृति का यह प्रमुख केंद्र, वाराणसी खूब विकसित हुआ, लेकिन सन् 1193 में आक्रमणकारियों ने इसको तबाह कर दिया. फिर अगले पांच सौ साल तक वाराणसी का यह विशाल क्षेत्र घने पेड़ों और मिट्टी में दबा रहा.(Ashok Stambh)

 

सन् 1794 में काशी नरेश को अपने महल के लिए पत्थरों की जरूरत पड़ी. यहां खुदाई करवाई तो जो भी सामग्री मिली उसे महल की नींव व दीवारों में काम में ले लिया.

 

ब्रिटिश अफसर और धम्म जिज्ञासु कनिंघम ने ह्वेनसांग की यात्रा विवरण के आधार पर 1836 में इसकी खुदाई शुरू करवाई जो लंबे समय तक जारी रही. इसी दौरान कई विहार, ध्यान साधना कक्ष, स्तूप, प्रतिमाएं और यह अशोक स्तम्भ टुकड़ों में मिला.(Ashok Stambh)

 

अग्रेजों को देश भर में इस तरह की खुदाई में जो भी सामग्री मिलती थी, उसी जगह हाथों हाथ सुरक्षित कर विशाल म्यूजियम बना दिये, अन्यथा भारत को उस स्वर्ण काल का पता ही नहीं चलता. यह भी झूठे इतिहास के पन्नों में दबा ही रहता कि यहां कभी कोई ‘बुद्ध’ हुए थे और मानव कल्याण की वाणी को संसार में फैलाने वाले सम्राट अशोक महान भी हुए थे.(Ashok Stambh)

 

 

सबका मंगल हो….सभी प्राणी सुखी हो

 

 

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