धम्मपद गाथा- जिस प्रकार अच्छी तरह से छाये हुए छप्पर में या घर की छत ठीक हो तो उसमें वर्षा का पानी प्रवेश नहीं कर सकता, उसी प्रकार ध्यान-भावना से ओत-प्रोत चित्त में राग आदि दोष प्रवेश नहीं कर पाएंगे | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


©डॉ. एम. एल. परिहार
यथागारं सुच्छन्नं, वुट्ठी न समतिविन्झति ।।
एवं सुभावितं चित्तं, रागो न समतिविज्झति ।।
तथागत कहते हैं- घर के छप्पर पर अच्छी तरह से इंतजाम नहीं किया गया हो, आधुनिक युग की बात करें तो सीमेंट, लोहे, रोड़ी से पक्के मकान की छत अच्छी तरह मजबूत या वाटर प्रूफ नहीं करवाई गई हो तो वर्षा का पानी कहीं न कहीं से छेद या तरार में से अंदर घुस ही जाता है। किंतु ध्यान साधना से छाये हुए चित्त में, सुरक्षित मन में राग जैसा विकार प्रवेश नहीं करता।
राग घुसता है इसका अर्थ यह है कि चित्त का छप्पर ठीक नहीं बनाया, ध्यान की छत छेद वाली है, तरार वाली है या वाटर प्रूफ साधनों से मजबूत नहीं की गई है।
राग (attachment, passion यानी किसी के प्रति तीव्र लगाव, चिपकाव, लालसा, मोह।
इसलिए चित्त में विकारों के प्रवेश को रोकने के लिए ध्यान अभ्यास पर जोर देते हैं वर्षा के पानी को गलत मत कहो, ध्यान साधना पर जोर दो, राग तो अपने आप ही मिट जाएगा।
इसलिए घर की छत को ठीक कर लो। अंधेरे को कोसने से कोई लाभ नहीं, अपने मार्ग के लिए दीया जला दो। यही सुख शांति का मार्ग है। यही सनातन सत्य है, यही धम्म है।
मनुष्य चारों ओर से भौतिक चकाचौंध, विलासिता, विषय बाजार से घिरा हुआ है। मन में विषय-वासनाएं भरी हुई हैं, हर पल नई इच्छाएं पैदा होती है, एक पूरी हो तो दूसरी तैयार हो जाती है, सारा वातावरण कुसंगति से भरा हुआ है।
ऐसे में मन में राग न आएगा तो क्या आएगा? लेकिन राग को रोकने का तथागत ने सुदृढ़ मार्ग ध्यान अभ्यास बताया है।
यदि व्यक्ति ध्यान अभ्यास करेगा, एकांत में चिंतन मनन करेगा, अध्ययन और विचार करेगा, शरीर और संसार की अनित्यता की अनुभूति करेगा, मन को वश में करने का अभ्यास करेगा, विकारों को दूर कर मन को निर्मल करेगा, सदाचार का जीवन जीएगा तो मन में विषय विकार नहीं घुस पाएंगे।
सबका मंगल हो … सभी प्राणी सुखी हो
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