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धम्मपदं : अपने शरीर को मिट्टी के कच्चे घड़े समान क्षणभंगुर जाने और राग, द्वेष व मोह से युद्ध कर अपनी रक्षा करें | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

कुम्भूपमं कायमिमं विदित्वा, नगरूपमं चित्तमिदं ठपेत्वा।

योधेथ मारं पञ्ञाआयुधेन, जितं च रक्खे अधिवेशनों सिया।।

 

     शरीर को मिट्टी के कच्चे घड़े के समान अनित्य, भंगुर, नाशवान जाने, इसे चित्त को नगर के किले के समान मजबूत और सुरक्षित बनाएं। तब प्रज्ञा रूपी हथियार लेकर मार से युद्ध करे। जीत लेने पर भी अपने चित्त की रक्षा करें तथा आसक्ति रहित होकर रहे।

 

यह शरीर मिट्टी के कच्चे घड़े की तरह टूट जाने वाला है, क्षणभंगुर है, ओस की बूंद की तरह है, सभी को एक दिन यहां से जाना है यहां कोई चीज स्थायी नहीं है। ध्यान साधना द्वारा जो कोई इस संसार की अनित्यता का अनुभव करता है और इस सत्य को हमेशा ध्यान करने वाला अकुशल कर्म, पाप कर्म नहीं कर सकता। वह अहंकार, क्रोध, मोह नहीं कर सकता।

 

तथागत कहते हैं – इस चित्त को इस प्रकार ठहरा लो, मानो कोई ठोस चट्टान या पहाड़ पर नगर का मजबूत किला बना हो, इस चित्त को नगर कोट की तरह मजबूत, सुरक्षित बनाओ। प्रज्ञारूपी हथियार से मार से युद्ध करो।

 

व्यक्ति के पास यह एक ही हथियार होता है, जाग्रति का, प्रज्ञा का, जिससे मन के विकारों से लड़ा जा सकता है और कोई हथियार प्रभावी नहीं होगा।

 

मार क्या है? – काम,क्रोध, राग-द्वेाष, मोह-लोभ, तृष्णा आदि सब असावधानी, मूर्छा की अवस्थाएं ही मार है। इसकी पूरी सेना है। इससे तथागत बुद्ध सजगता और प्रज्ञा रूपी हथियार से लड़ने की शिक्षा देते हैं।

हर्ष वेदना | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
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तथागत आगे कहते हैं- जीत के लाभ की रक्षा करें अर्थात यदि प्रज्ञारूपी हथियार से युद्ध करने पर छोटी-बड़ी जीत मिलती है तो उसकी रक्षा करे, संभाल कर रखे क्योंकि यह बहुत मुश्किल से मिलती है। जो कमाया है उसकी हिफाजत करना बहुत जरूरी है। वरना लापरवाही में नई जीत तो मिलेगी नहीं और पुरानी कमाई हुई संपदा भी खो जाएगी।

 

इसलिए ध्यान अभ्यास निरंतर कर जीत के लाभ की रक्षा करे। जितना चित्त साफ हो जाए, वह लापरवाही से फिर मैला हो जाएगा। इसलिए ध्यान की परिपूर्ण अवस्था तक चित्त के शोधन और संपादान का कार्य जारी रखना चाहिए।

 

जब तक मंजिल न मिल जाए प्रयास जारी रखना है। मन पर जीत मिलने के बाद उस जीत की रक्षा करे, साथ ही फिर से आसक्त न हो जाओ इसके लिए पूरी सावधानी बरतनी है.

 

       सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो

 

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