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बाहर मत भटको, सुख को चाहना और पाना, दोनों मन के भाव हैं, अपने सुख की चाबी तो स्वयं के पास है … Buddh

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

All the living beings in the world want happiness. Every person wants to get rid of sorrows. Wanting and getting happiness, both are feelings of the mind. The mind is the one who wants and the mind is the one who gets. This proves that only the mind can open the lock of happiness. That’s why it is necessary to understand the importance of mind. Buddh

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन: संसार में सभी प्राणी सुख चाहते हैं. हर इंसान दुखों से मुक्ति पाना चाहता है. सुख को चाहना और पाना, दोनों ही मन के भाव है. चाहता मन ही है और पाता भी मन ही है. इससे यह साबित होता है कि मन ही सुख का ताला खोल सकता है. इसलिए मन के महत्त्व को समझना जरूरी है. Buddh

 

तथागत बुद्ध कहते है – मन ही प्रधान है, वही हमारे दुख- सुख का आधार है. जिसका मन जितना अधिक अशुद्ध है वह उतना ही दुखी है और मन जितना अधिक निर्मल है, विकारों से मुक्त हैं वह उतना ही सुखी है.

 

यह प्रकृति की देन हैं कि मन स्वभाविक रूप से जल की तरह शुद्ध निर्मल होता है. जल में काला रंग मिलाने पर काला और दूध मिलाने पर वह सफेद हो जाता है. जल में नमक मिलाने पर खारा और शहद मिलाने पर मीठा हो जाता है.

 

ठीक इसी प्रकार मन में भी क्रोध, मोह, लोभ, घृणा, अहंकार जैसी अशुद्धियों के आने पर व्यक्ति स्वयं दुखों को मोल लेता है और सुख से बहुत दूर हो जाता हैं. लेकिन मन में प्रेम, सद्भाव, दया, करुणा व मैत्री की मिठास मिलने पर जीवन सुखों से भर जाता है. इन मानवीय गुणों से भरे इंसान के पास सुख स्वयं चल कर आते हैं.buddh

 

सांसारिक जीवन में मन का स्वभाव बदल कर काफी अशुद्ध व चंचल हो जाता है, भटकता रहता है. सिर्फ भौतिक सुख सुविधाओं को पाने के लिए मन इनकी ओर ज्यादा केंद्रित रहता है लेकिन गलत ढंग से प्राप्त पैसा, पद व प्रतिष्ठा को पाने के बाद भी सुख शांति मिलने की बजाय उल्टा सुख शांति चली जाती है. फिर व्यक्ति इन चीजों के खो जाने के भय से चिंतित रहता है.buddh

 

मन की तृष्णा, इच्छाओं व कामनाओं पर काबू नहीं करने से वे अमरबेल की तरह दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं. आए दिन नई इच्छाएं, एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी पैदा हो जाती हैं जिनका अंत ही नहीं होता है .और इंसान इनके जाल में फंसकर सुख से कोसों दूर हो जाता है.buddh

 

तथागत बुद्ध कहते है, मन की सुख शांति के लिए प्रेम, करुणा व मैत्री के सद्गुणों को सहेजना और अवगुणों को प्रवेश करने से रोकना जरूरी है. जिस प्रकार अच्छी तरह से ढकी हुई कुटिया में वर्षा का पानी नहीं टपकता है उसी प्रकार ध्यान साधना विपस्सना के अभ्यास से काबू किए हुए मन में क्रोध, मोह, घृणा, लोभ, अहंकार के अवगुण प्रवेश नहीं कर सकते हैं.

 

इस प्रकार मनुष्य का दुखों से मुक्ति पाकर सुखी होना उसके वश में हैं. कोई दूसरा उसका मालिक नहीं है वह अपना स्वामी स्वयं है और स्वयं ही चित्त को ध्यान द्वारा काबू करके विकारों से मुक्त होकर, मन को निर्मल कर सुख शांति का जीवन जी सकता है. अर्थात मनुष्य के सुख की चाबी स्वयं उसके पास ही है ,कहीं बाहर भटकने की जरूरत नहीं.buddh

Buddh

भवतु सब्बं मंगलं..सबका कल्याण हो..सभी प्राणी सुखी हो 

 

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