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डॉ. अम्बेडकर बनाम गांधी जी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

राजेश कुमार बौद्ध

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय-   गोरखपुर, उत्तर प्रदेश


 

दोनों महापुरूष राष्ट्रभक्त एवं वकील थे। इसके बावजूद गांधी जी कभी भी बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के रोल मॉडल या प्रेरणा स्रोत नहीं रहे। इसका मुख्य कारण यह था कि- गांधी जी की लड़ाई मात्र अंग्रेजों की दो सौ वर्षों की गुलामी से थी, जबकि डॉ. अम्बेडकर की लड़ाई अंग्रेजों के साथ – साथ हजारों वर्षों की भारतीय जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, ऊंच- नीच, छुआछूत आदि अमानवीय भेद-भाव से भी था।

 

गांधी जी को जब अफ्रीका में ट्रेन से घसीट कर फेंका गया तब काला – गोरा रंग-भेद समझ में आ गया लेकिन भारत में वर्ण-भेद, जाति-भेद समझ में नहीं आया। वे वर्ण व्यवस्था के अंदर नाम बदल कर अर्थात चमार को हरिजन बनाकर ख्याति प्राप्त करना चाहते थे, जो बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को मान्य नहीं था।

 

बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के हाथ में भारतीय संविधान रहता है जिससे देश चल रहा है। जो भारतीय समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं भाईचारा का पक्षधर है, जबकि गांधी जी के हाथ में गीता पुस्तक रहती है जो जाति एवं वर्ण व्यवस्था के अंदर कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो वर्तमान में निरर्थक हो चुकी है। इतना ही नहीं वर्तमान में अगर किसी को पुश्तैनी व्यवसाय करने की प्रेरणा दी जाती है तो वह मूर्खता ही है।

 

गांधी जी दिखावे में महात्मा थे, विचार से राजनीतिज्ञ और बनिया के पुश्तैनी पेशे से भिन्न जीविका के लिए वकालत चुना। इतना ही नहीं अंदर से रुढ़िवादी सनातनी और बाहर से धर्मनिरपेक्ष थे। उनका अनुयाई सबसे छोटा बेटा प्रेस खोल लिया और ब्राह्मणी लड़की से शादी कर ली, इसे वे वर्ण प्रथा का उल्लंघन नहीं माने।

 

वकील होते हुए भी बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के चाहने पर भी संवाद के लिए कभी तैयार नहीं हुए। वर्णाश्रम के विरोध में बाबा साहब का तर्क था कि क्या कोई महिला वेश्यावृत्ति करती है तो क्या उसकी आने वाली संतानों को भी यही पेशा अपनाना चाहिए ? इस पर गांधी जी मौन थे। कार्यकुशलता क्या होती है यह गांधीजी के समझ से परे था।

 

डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को अंग्रेजों के शाही भोज में वही सम्मान मिलता था जो नेहरू और सिंधिया परिवार को मिलता था। सम्मान का कारण जाति नहीं बल्कि योग्यता थी। अंग्रेज बाबा साहब की योग्यता के कायल थे। और सम्मान भी करते थे।

 

बाबा साहब डॉ अम्बेडकर एक वकील और वायसराय कार्यकारिणी के श्रम सदस्य थे, इसलिए अंग्रेजी पोशाक कोट- पैंट पहनना उनका शौक और मजबूरी दोनों थी। जिसके कारण ही भारत के नवनिर्माण में आजादी से पूर्व और पश्चात में भी सराहनीय भूमिका रही। जबकि गांधी जी की विशेष भूमिका फकीरी भेष में आजादी के लिए जनमत संग्रह करना था। आश्चर्य तो तब होता है जब गांधी जी के अनुयाई ही उनकी विचारधारा को नहीं अपनाए।

 

गांधी जी बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के विरोध में भूख हड़ताल किए। उनकी पत्नी कस्तूरबा बाई और पुत्र देवदास के अनुरोध और अन्य कारणों से बाबा साहब ने गांधी जी को पूना पैक्ट समझौता कर जीवनदान दिया।

 

भारत रत्न बाबा साहब को ” बाबा साहब ” की उपाधि मान्यवर सी.बी. खैरमोडे ने सन 1927 में 36 वर्ष की उम्र में दे दिया। जबकि गांधी जी को 4 जून 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने “बापू ” की उपाधि दी। इसके साथ ही गांधी जी ने रवींद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव की उपाधि दिया तत्पश्चात रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को गुरुदेव के बदले में ” महात्मा ” की उपाधि दी।

 

बाबा साहब डॉ.अम्बेडकर पाकिस्तान के रूप में भारत का विभाजन और अलग कश्मीर (धारा 370) के पक्ष में नहीं थे। गांधी और नेहरू एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य सदस्यों के कारण ही भारत का विभाजन हुआ जो बाद में सिरदर्द बना।

 

जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के पीछे भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हाथ था लेकिन धारा 370 खत्म करने का जो प्रावधान है वह बाबा साहब द्वारा संवैधानिक देन है।

 

जहां गांधी जी की सोच धर्मवादी था वहीं बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की सोच विज्ञानवादी था।

 


नोट :- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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