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डॉ. लोहिया का समाजवाद | ऑनलाइन बुलेटिन

©पारसनाथ जिज्ञासु

परिचय- पूर्व डिप्टी कमिश्नर, गोरखपुर प्रशासन, उत्तर प्रदेश.


 

डॉ. लोहिया का नारा था कि संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ। स्पष्ट है कि लोहिया का समाजवाद केवल पिछड़ी जातियों का समाजवाद था। संविद सरकार में वित्त मंत्री रहे माननीय रामस्वरूप वर्मा भी समाजवादी पार्टी में शामिल थे। परन्तु वे सभी कमेरा जातियों के उत्थान के पक्षधर थे जो ब्राह्मणवादी व्यवस्था से पीड़ित थे। जब उन्होंने डॉ. लोहिया के समाजवाद पर गहनता से विचार किया तो पता चला कि लोहिया पक्के ब्राह्मणवादी थे और पिछड़ी जातियों को ब्राह्मणवादी चंगुल से ‌मुक्त कराने के विरुद्ध थे।

 

माननीय रामस्वरूप वर्मा ने देखा कि डॉ. लोहिया दिन भर समाजवाद का भाषण देते थे और सुबह-शाम रामचरित मानस का पाठ करते थे। डॉ. लोहिया के इस दोहरे चरित्र पर माननीय रामस्वरूप वर्मा ने आपत्ति उठाई। वर्मा जी ने कहा कि दिन भर आप समाजवाद के बारे में भाषण देते हैं और सुबह-शाम रामचरित मानस का पाठ करते हैं। कृपया स्पष्ट करें कि तुलसी कृत रामचरितमानस में आपको कौन सा समाजवाद दिखाई देता है। इस बात पर डां लोहिया और रामस्वरूप वर्मा के बीच कुछ लोगों के सामने कई दिनों तक बाद विवाद चला परन्तु लोहिया जी; रामस्वरूप वर्मा को संतुष्ट उत्तर नहीं दे पाए। अंततः रामस्वरूप वर्मा जी ने समाजवादी पार्टी से संबंध विच्छेद कर नई पार्टी शोषित समाज दल बनाई थी।

 

जिसका नारा था कि -दस का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। फिर कहा कि-हम है सौ में नब्बे, नब्बे भाग हमारा है। धन धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है। स्पष्ट है कि माननीय रामस्वरूप वर्मा जी समाज के सभी शूद्रों और अछूतों को ब्राह्मण वाद से मुक्ति दिलाना चाहते थे। बाद में मान्यवर कांशीराम जी ने बामसेफ नाम का सामाजिक संगठन और राजनैतिक दल के रूप में बहुजन समाज पार्टी बनाई थी।

 

इसी आधार पर भीम आर्मी के नेता चन्द्र शेखर ने आजाद समाज पार्टी बनाई है। स्पष्ट रूप से लोहिया के सिद्धांतों पर आधारित समाजवादी पार्टी और मान्यवर कांशीराम और माननीय रामस्वरूप वर्मा द्वारा निर्मित राजनैतिक दल शोषित समाज पार्टी के बीच सैद्धांतिक मतभेद है। समाजवादी पार्टी केवल पिछड़े वर्गों के लोगों के हितों को ध्यान में रख कर गठित की गई थी जो हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत शूद्र वर्ण में आते हैं। यह पिछड़े वर्गों को अंधकार में रख कर हिन्दू वर्ण- व्यवस्था का अंग बनाए रखने की एक साज़िश है।

 

अभी भी पिछड़े वर्गों के लोग हिन्दू बर्ण व्यवस्था से मोहभंग नहीं हो रहा है। अभी 5 साल पूर्व जब अखिलेश सिंह यादव ने मुख्यमंत्री का बंगला खाली किया था तो उन्हें शूद्र मानते हुए वह बंगला गोबर, गो-मूत्र आदि से धुलवा कर पवित्र किया गया था और यह एहसास कराया गया था कि यादव (अहिर) जाति शूद्र वर्ण में आती है। इसके परिणाम स्वरूप पिछड़ी जातियों में जागरूकता आई है। लेकिन फिर भी अखिलेश सिंह यादव का ब्राह्मण म़ोह भंग नहीं हो रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्य और अन्य बहुत से पिछड़ी जातियों के नेता जो राजनैतिक स्वार्थवश दल-बदल कर रहे हैं। उनकी बहुजन बिचारधारा कहां लुप्त हो गई है। पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षित मतदाता इस बात पर गम्भीरता पूर्वक बिचार करें अन्यथा आरएसएस, भाजपा और ब्राह्मणवाद से मुक्ति असंभव होगा।

 


नोट :- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


 

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