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अनुसूचित जाति का भविष्य खतरे में | ऑनलाइन बुलेटिन

©हरि शरण गौतम

परिचय- अध्यक्ष / मुख्य संयोजक, उप्र अनुसूचित जाति / जनजाति संगठन का संयुक्त मोर्चा, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश.


 

ज अनुसूचित जाति का भविष्य खतरे में है, न केवल उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे भारत में। आप अवगत होंगे कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 में यह व्यवस्था दी गई है कि राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित जाति की विज्ञप्ति,1950 व तत्संबंधी संशोधित विज्ञप्ति 1956 में कोई संशोधन तभी हो सकता है जब संबंधित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट और केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग की अनुशंसा प्राप्त होने पर केंद्र सरकार कैबिनेट से पास कराकर उसे ल‌ोक सभा और राज्य सभा से पारित कराकर राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करे, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार बार- बार अनधिकृत रूप से गैर संवैधानिक आदेश जारी कर 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करती रही है।

 

विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है …

 

  • सर्वप्रथम 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थवश 17 ओबीसी  (निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा और गोड़िया) को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का आदेश किया था। इसके पश्चात 2016 में अखिलेश यादव सरकार व 2019 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने पुनः इन्हीं 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का आदेश जारी किया। इन सभी आदेशों के विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकायें दायर की गईं और उच्च न्यायालय द्वारा इन्हें असंवैधानिक पाए जाने पर स्थगन जारी किया गया।

 

  • इन 17 ओबीसी को लगता है कि उन्हें अनुसूचित जाति की सूची में शामिल होने पर उनकी सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। अनुसूचित जाति में शामिल होने पर सपा और भाजपा ग्राम प्रधान/पार्षद से लेकर विधायक और सांसद तक सभी सीटों पर इन्हें टिकट देंगी। मूल अनुसूचित जाति से धनबल और बाहुबल में मजबूत होने के कारण ये इन सभी सीटों पर चुनाव जीतेंगे भी।

 

  • सपा और भाजपा की दृष्टि में मूल अनुसूचित जाति के लोग बसपा समर्थक हैं और उसके वोटबैंक भी। वे उन्हें वोट नहीं देते हैं। इनका मानना है कि यदि इन 17 ओबीसी को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया जाय तो इनका वोट उनके लिए पक्का हो जाएगा।

 

  • जहां तक सरकारी विभागों / उपक्रमों में नौकरियों में आरक्षण की बात है; वहां भी यह 17 ओबीसी हावी हो जाएंगी और मूल अनुसूचित जाति के लोग 1947 की स्थिति में पहुंच जाएंगे।

 

  • यह सर्वविदित है कि अनुसूचित जाति का आज तक जो भी विकास हुआ है वह सरकारी नौकरियों में मिले आरक्षण के फलस्वरूप ही हुआ है।

 

  • निश्चित रूप से यह 17 ओबीसी के लोग 1950 में अछूत नहीं थे। अब आजादी के बहत्तर वर्ष बाद ये जातियां कैसे अछूत हो गईं? जबकि अनुसूचित जाति की सूची बनाने का मुख्य आधार उनका अछूतपन ही रहा है। निश्चित रूप से यह जातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से मूल अनुसूचित जातियों से समृद्ध रही हैं।

 

  • ये 17 ओबीसी के लोग अनुसूचित जाति में शामिल होने पर किसी मामले में विवाद होने पर मूल अनुसूचित जाति के लोगों को मारेंगे- पीटेंगे अलग से और इनके विरुद्ध एससी-एसटी (एट्रोसिटीज) एक्ट भी नहीं लग पाएगा।

 

  • इन 17 ओबीसी को यह ज्ञात ही नहीं है कि आखिर उनका हिस्सा खा कौन रहा है? प्रदेश में ओबीसी की आबादी 52% है जिसमें इन 17 ओबीसी की जनसंख्या 14% है। मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के 30-32 वर्ष बाद भी केंद्र सरकार की श्रेणी एक और दो में इनका प्रतिनिधित्व लगभग 7 प्रतिशत, श्रेणी 3 में 15 प्रतिशत और श्रेणी 4 में 17 प्रतिशत ही है जबकि सरकार द्वारा इन्हें 27% का आरक्षण दिया गया है। अतः इनके नेताओं को संसद व विधानसभा में इनका कोटा पूरा न होने की आवाज उठानी चाहिए कि 30 वर्ष बीत जाने पर भी इनका कोटा अभी तक पूरा क्यों नहीं किया गया? क्यों न एक विशेष अभियान चला कर इनका कोटा पूरा किया जाय?

 

  • अन्य ओबीसी की तुलना में इन 17 ओबीसी की आर्थिक स्थिति निश्चित रूप से दयनीय है। अतः राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने हेतु ओबीसी में ही इनके लिए अलग से कोटा निर्धारित किया जा सकता है। और, इसमें कोई विधिक अड़चन भी नहीं आएगी।

 

  • संविधान के अनुच्छेद 341(2) में न तो प्रांतीय सरकार और न ही केंद्र सरकार को कोई विज्ञप्ति जारी कर अनुसूचित जाति की सूची से किसी जाति को घटाने या बढ़ाने का अधिकार है। इसी आधार पर उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश भी मिलते रहे हैं।

 

  • सर्वप्रथम 2005 में मुलायम सिंह सरकार द्वारा 17 ओबीसी को एससी की सूची में शामिल करने का आदेश किया गया था जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में गोरखपुर की संस्था डा० बीआर अंबेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति (अध्यक्ष -हरि शरण गौतम) द्वारा चैलेंज किया गया। हमारे अधिवक्ताओं- श्री एसपी सिंह व श्री राकेश कुमार गुप्ता के तर्कों को सुनने के बाद मा० इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्थगन आदेश जारी किया गया। बाद में उतर प्रदेश सरकार ने विज्ञप्ति जारी कर अपना आदेश वापस ले लिया।

 

  • दिसम्बर 2016 में अखिलेश यादव सरकार द्वारा कुछ संशोधनों के साथ पुनः इन 17 जातियों को फरवरी 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का आदेश किया गया।तब तक गोरखपुर में सामाजिक संगठनों का संयुक्त मोर्चा बन चुका था। अतः संयुक्त मोर्चा द्वारा हाईकोर्ट में सरकार के इस आदेश को चैलेंज किया गया। चूंकि संयुक्त मोर्चा रजिस्टर्ड संगठन नहीं है इस कारण पुनः डॉ. बीआर अंबेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की गई। इस रिट याचिका पर विस्तृत सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति पर रोक लगाई गई।

 

  • जून 2019 में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पुनः गैरसंवैधानिक आदेश जारी करते हुए इन 17 ओबीसी को एससी की सूची में शामिल किया गया। यह राजाज्ञा भी माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हमारे अधिवक्ता श्री राकेश कुमार गुप्ता को सुनने और अभिलेखों को देखने के पश्चात स्थगित कर दिया गया। अधिवक्ता के सुझाव पर संयुक्त मोर्चा के एक पदाधिकारी श्री गोरख प्रसाद के हस्ताक्षर से यह याचिका दायर की गई।

 

  • अभी 27 जुलाई 2022 को यह केस अंतिम सुनवाई हेतु मुख्य न्यायाधीश कोर्ट में लगी थी जिसमें केंद्र सरकार के एडीशनल एडवोकेट जनरल, उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट जनरल व एक एडीशनल एडवोकेट जनरल सहित दसों अधिवक्ता उपस्थित हुए जबकि याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता श्री राकेश गुप्ता उपस्थित हुए। सरकार की तरफ से अभी तक काउण्टर न लगाए जाने पर कोर्ट की तरफ से फटकार भी लगाई गई। केंद्र सरकार की तरफ से उपस्थित एडीशनल एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को यह बताया कि इस मामले में बहुत हाई लेबल पर मीटिंग चल रही है, इस कारण अभी वह काउण्टर नहीं लगा सकते।

 

  • साथियों, उत्तर प्रदेश व केंद्र की भाजपा सरकार सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है। इस समय लोकसभा व राज्यसभा, दोनों सदनों में सरकार को बहुमत प्राप्त है। अतः बहुत कुछ संभावना है कि वह इन 17 ओबीसी को संविधान संशोधन के माध्यम से एससी की सूची में शामिल कर दे। एक राजनीतिक दल निषाद पार्टी द्वारा सरकार पर दबाव भी बनाया जा रहा है।

 

साथियों, यदि ऐसा होता है तो हमारे मूल एससी समाज का क्या हाल होगा? क्या कोई एससी समाज का व्यक्ति ग्राम प्रधान से लेकर सांसद बन पाएगा? क्या कोई एससी सरकारी नौकरी पा पाएगा? धनबल और बाहुबल से मजबूत इन 17 ओबीसी से क्या हमारा समाज अपने को सुरक्षित रख पाएगा? कृपया इस पर गहनतापूर्वक विचार करें और अपने समाज की सुरक्षा का रास्ता ढूढ़ें।


नोट :– उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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