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गुम हुआ हिजाब ! गायब है बुर्का !! अरबी औरत अब अंतरिक्ष में | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

–लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

    Lost hijab! Burqa is missing!! arabic woman now in space. रूढ़िवादी मजहब का उद्गम स्थल सऊदी अरब फिर आसमान में छलांग लगाएगा। अभी तक तो वहां के आदमी ही जाते रहे। अब औरत जाएगी। इसी मई माह में। चेहरा खुला, अध-कटी लहराती जुल्फें। साथ में लड़ाकू मर्द भी। ऐसा नजारा कल्पना के परे था। मगर अब सऊदी अरब में नर नारी की विषमता लुप्त हो गई। ऐसा मंजर केवल तुर्की और ईराकी सेक्युलर गणराज्यों में मुमकिन था। अब यह घोर, इस्लामी कदामत-पसंद का भी रिवाज हो जायेगा।

 

तैंतीस वर्षीया-कैंसर निष्णात रेयाना बरनावी नाम है उस बहादुर युवती पायलैट का। साथ में अरब के ही अली अल कारनी होंगे। अमरीका के इंटरनेशनल स्पेस सेंटर से उड़ेंगी। इस चर्चित, मगर अप्रत्याशित खबर को जानकर तत्काल यकीन करना बड़ा कठिन था। अब क्या तर्क रहेगा ईरान और भारत में हिजाब की आवश्यकता के पक्ष में ?

 

     हालांकि भारतीय मुसलमान इक्कीसवीं सदी में है मगर तेरहवीं सदी वाली उनकी मानसिकता है। खासकर जब वह मदरसा का मसला हो। विज्ञान पर दृष्टिकोण हो अथवा युवजन के आपसी रिश्तें वाला प्रश्न हो। सऊदी अरब कितना तरक्की कर गया ? इसी दुनिया में ही नहीं, दूर ऊंचे नभ मंडल में भी। विशेषतया तीन तलाक, चार जोरू, पांच बार नमाज आदि के परिवेश में।

 

इस्लामी जहान में इस क्रांतिकारी परिवर्तन का सारा श्रेय जाता है सऊदी राजकुमार प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अल सऊदी को। जबकि दुनिया के इस्लामी मुल्क अभी तक धार्मिक मकड़जाल में बंधे हैं, फंसे हैं, साउदी अरब बदलाव के करवट तेजी से पकड़ रहा है। ऐसी प्रगतिवादी सोच का ठोस आधार भी है। पेट्रोल की जगह आजकल बिजली का इस्तेमाल बढ़ रहा है। वाहन और अन्य तेल-आधारित उपकरणों में पेट्रोल की खपत शीघ्र घटेगी। अर्थात सऊदी अरब के तेल उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा।

 

अतः युवराज सलमान की दूरदर्शिता का यह प्रमाण है कि अंतरिक्ष विज्ञान पर भी दृष्टि डालना और उसका उपयोग करना। यह युवराज चर्चा में आए थे जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सऊदी अरब के शक्तिशाली क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर खशोगी की हत्या का आदेश देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि सऊदी अरब का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बॉयकाट किया जाना चाहिए।

 

लेकिन उन्हीं जो बाइडेन ने बाद में सऊदी अरब का दौरा किया। उन्हें आशा है कि उनके इस दौरे से सऊदी अरब कच्चे तेल की कीमतों में कटौती करने को राजी हो जाएगा। कई यूरोपीय नेताओं ने भी बाइडेन के नक्शेकदम पर चलते हुए 2018 में इस्तांबुल में सऊदी दूतावास में खशोगी की हत्या को लेकर सऊदी की निंदा की थी, लेकिन वो भी मानते हैं कि इस वैश्विक ऊर्जा दिग्गज को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

 

युवराज सलमान सऊदी अरब को रूढ़िवादी विचारधारा से मुक्त कर रहे हैं। उन्हें तोड़ रहे हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सऊदी को एक उदार देश के तौर पर स्थापित करने की अगाध कोशिश भी की। लेकिन खशोगी की हत्या ने उनकी छवि पर गहरा दाग लगा दिया था। उस वक्त अमेरिका समेत कई यूरोपीय देश खुलकर प्रिंस सलमान की आलोचना करने लगे थ।

 

लेकिन इस मुखर नेता ने वास्तविकता का सामना करते हुए मध्यपूर्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश की सत्ता को संभाले रखा। प्रिंस सलमान ने सउदी के लिए रोजगार पैदा करने और वित्तीय सुधारों को शुरू करने के लिए नए उद्योगों को विकसित करने के उद्देश्य से व्यापक बदलावों की घोषणा की। उनके हाई-प्रोफाइल सामाजिक सुधारों में सिनेमा और सार्वजनिक मनोरंजन की अनुमति देना शामिल है।

 

उन्होंने सऊदी अरब में महिलाओं के ड्राइविंग पर लगे प्रतिबंध को भी समाप्त कर दिया। अब यह प्रिंस सऊदी अरब के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय भी हो गये हैं। उनके नेतृत्व में सऊदी अरब में महिलाओं को पुरुषों के बिना भी विदेश यात्रा की अनुमति दे दी गई है। साथ ही सऊदी अरब में कामकाजी महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। साल 2016 में सऊदी अरब में कामकाजी महिलाओं की संख्या 17 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 37 फीसदी हो गई है।

 

अन्तरिक्ष मिशन का उद्देश्य युवराज द्वारा अपने देश की क्षमताओं को बढ़ावा देना है। साथ ही स्पेस इंडस्ट्री की ओर से पेश किए गए अवसरों को भुनाना है। उनके सत्ता में 2017 में आने के बाद से महिलाओं को बिना पुरुष साथी के अकेले वाहन चलाने की अनुमति दी गई है। सर्वप्रथम सऊदी शाही राजकुमार सुल्तान बिन सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ के साथ एक एयरफोर्स पायलट ने 1985 में अमेरिका की ओर से आयोजित अंतरिक्ष मिशन में भाग लिया था। सुल्तान बिन अब्दुलअजीज अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले पहले अरब मुस्लिम बने थे।

 

इस सऊदी अरबी महिला रेयाना की इसी ग्रीष्म काल में अंतरिक्ष की यात्रा से भारतीय मुसलमान स्त्रियों का भी दृष्टिकोण बदलेगा। मजहब की जन्मभूमि में इंकलाबी परिवर्तन से भारत के मुल्लों और मौलवियों को भी युवतियों के प्रति अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। मक्का-मदीना वाले देश में नई नारीवादी सोच के सामने ये प्रतिक्रियावादी संकीर्ण अवधारणा वाले हिंदुस्तानी धार्मिक नेताओं के पुरातन तर्क अब ढा जाएंगे।

 

मगर प्रश्न बना रहेगा कि नवक्रांति की इब्दिता का मुहूर्त कब आएगा ? क्या भारतीय मुसलमान समझ जाएंगे कि हिजाब और बुर्के के बाहर भी एक दुनिया है। नयी, खूबसूरत, अधिक जनहितकारी और आगेदेखू ! सऊदी अरब के इस दूरगामी कदम से इस्लामी तालिबानी की नारी के प्रति घटिया सोच और दृष्टि तो पंक्चर हो ही जाएगी। काबुल में आज भी महिला बिना पुरुष संगी के सड़क पर निकल नहीं सकती। कोड़े पड़ते हैं। सजा मिलती। तो काबुल क्या अब मक्का-मदीना के नए नजरिये को स्वयं अपनायेगा ?

 

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