असंभव को संभव कर दिखाने का ही नाम कांशीराम है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©राजेश कुमार बौद्ध
परिचय- संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश
मान्यवर कांशीराम जी ने अक्टूबर,1998 में मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित प्रथम विश्व दलित सम्मेलन को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कहा था कि,”यदि आप यह सोच रखते हैं कि हम जातिविहीन समाज के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ें तो मैं आपसे यही कहूंगा कि आप शासक बनकर ही एक जाति विहीन समाज की स्थापना कर सकते हैं, क्योंकि शासक ही नए समाज का निर्माण कर सकता है। आप यह कह सकते हैं कि मैं असंभव सी बात कह रहा हूं, लेकिन मैंने अपनी जिन्दगी में सदैव ही असंभव से लगने वाले कामों में हाथ डाला है, और साथ ही उनमें सफलता भी हासिल की है…. इसी का नाम ‘कांशीराम’ है।”
सन 1962-63 में मान्यवर कांशीराम साहब ने डॉक्टर आंबेडकर द्धारा लिखित पुस्तक, “Annihilation Of Caste” पढ़ी थी। किताब पढ़कर उन्हें लगा कि जाति का विनाश सम्भव है। बाद में, उन्होंने भारत में जातीय व्यवस्था और जातीय आचरण का गहराई से अध्ययन किया। फिर उनकी सोच में परिवर्तन आया और उन्होंने जाति का अध्ययन सिर्फ किताबों से नहीं बल्कि असल जिंदगी से किया।
उन्होंने देखा कि जो लोग करोड़ों की संख्या में अपने – अपने गांव छोड़कर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा अन्य बड़े – बड़े शहरों में पलायन करते हैं, वे अपने साथ और कुछ नहीं, बल्कि अपनी जाति को लाते हैं। वे अपने छोटे – छोटे झोपड़े, मवेशी और छोटी – छोटी जमीनें आदि सब पीछे गांव में ही छोड़ आते हैं और केवल अपनी जाति को पल्लू में बांधे शहर की गन्दी बस्तियों, नालों, रेल की पटरियों आदि के किनारे बस जाते हैं।
कुआलालंपुर की विशाल सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, “आप लोगों ने जातिविहीन समाज की दिशा में आगे बढ़ने के उद्देश्य से इस सम्मेलन का आयोजन किया है। मेरा उद्देश्य भी एक जाति विहीन समाज की स्थापना करना है, लेकिन जाति कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे मात्र आपके चाहने भर से नष्ट किया जा सकता है। जाति को नष्ट करना लगभग असंभव है।”
उन्होंने आगे कहा, “जाति के निर्माण के पीछे एक खास मक़सद है। जाति का निर्माण बिना किसी मकसद के नहीं किया गया है। इसके पीछे एक गहरा स्वार्थ छिपा हुआ है और जब तक यह स्वार्थ जिन्दा रहता है, जाति का विनाश नहीं किया जा सकता है। आप ब्राह्मणों या सवर्णों को इस प्रकार जातिविहीन समाज की पुनर्स्थापना के लिए सम्मेलन या विचार गोष्ठियां करते हुए नहीं देखेंगे।
ऐसा इसलिए है क्योंकि जाति का निर्माण इन्हीं वर्गों द्वारा अपने नीच स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया है। जाति के निर्माण से केवल मुट्ठी भर सवर्ण जातियों को ही लाभ हुआ है, और 85% बहुजन समाज को पिछले हजारों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी नुकसान ही होता रहा है और वे अपमान सहते हुए उनके शोषण का शिकार बनते रहे हैं। यदि जाति के निर्माण से सवर्ण जातियों को ही लाभ होता रहा है, तो भला वे जातियों के विनाश के लिए पहल क्यों करेंगे?
इस तरह के सम्मेलन सिर्फ हम लोग ही आयोजित करते हैं, क्योंकि हम इस जाति व्यवस्था के शिकार हैं। जिन्हें इस व्यवस्था से फायदा मिल रहा है, उनकी जाति के विनाश में कोई रुचि नहीं हो सकती, बल्कि वे तो जाति व्यवस्था को और अधिक मजबूत देखना चाहते हैं, ताकि जाति के आधार पर मिलने वाली सभी सुविधाएं भविष्य में भी जारी रह सकें।
“मान्यवर साहब ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, “इस सभागार में जो लोग बैठे हैं, उनमें से ज्यादातर शायद प्रत्यक्ष रूप से जाति के शिकार न रहे हों, लेकिन हम सभी का जन्म ऐसे लोगों या समाज के बीच हुआ है, जो जाति के शिकार हैं, इसलिए हमें जाति के विनाश की दिशा में सोचने की जरूरत है।”
मान्यवर कांशीराम जी का मानना था कि, बेशक हमारे अन्दर जातिविहीन समाज बनाने की प्रबल इच्छा है, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि निकट भविष्य में जाति के विनाश की संभावना न के बराबर है। जब तक हम जाति विहीन समाज की स्थापना करने में सफल नहीं हो जाते, तब तक हमें जाति को ही हथियार के रूप में इस्तेमाल करना होगा।
मान्यवर कांशीराम ने अपने इसी अस्त्र का प्रयोग करते हुए यूपी में सरकार बनाई और शासक जमात बनकर जाति विहीन समाज की स्थापना की और अपने कदम बढ़ाते हुए यूपी को बौद्धमय बनाने हेतु वे सभी काम कराए जो जरूरी थे। यूपी में बीएसपी द्वारा संचालित योजनाओं से जातिवादियों के पेट में मरोड़ तो हुई, लेकिन कारवां थमा नहीं।
कांशीराम साहब का मत था कि हम शासक बनकर एक जाति विहीन समाज की स्थापना करने में सक्षम हो सकते हैं। क्योंकि बहुजन समाज की सभी समस्याओं का यही एक मात्र हल है। निश्चित ही मान्यवर कांशीराम साहब, गहन सोच वाले और दूरदृष्टि वाले ऐसे नेता थे कि वे जैसा कहते थे वैसा करते भी थे। असंभव कार्य को भी सम्भव कर दिखाने का हुनर उनमें था। उनके इस हुनर का लोहा उनके विरोधी भी मानते थे।
मान्यवर कांशीराम साहब ने बहन मायावती का चयन इसलिए नहीं किया था कि वे एक मेधावी लड़की थीं बल्कि उन्होंने मायावती का चयन इसलिए किया था कि उनमें मान्यवर कांशीराम साहब को एक तेज तर्रारपन, जुझारूपन और आंबेडकरी विचारधारा के प्रति समर्पण दिखा था। यूपी के लिए उन्हें ऐसा नेता चाहिए था, जो यूपी का ही हो और यूपी के लोगों के साथ कनेक्ट कर सकता हो। एक साधारण महिला को अपने साथ लेकर उन्होंने असंभव दिखने वाले कार्य को भी सम्भव कर दिखाया और बहुजन समाज को शासक वर्ग की जमात में लाकर खड़ा कर दिया।
आज वे इस इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार बहुजन समाज का मार्गदर्शन करते रहेंगे। वर्तमान में, उनका कारवां रुक गया है, क्या आगे बढ़ पाएगा? इस पर उनके उत्तराधिकारियों को गंभीरता पूर्वक विचार करना होगा और त्रुटियों को दूर कर बहुजन समाज के साथ आगे बढ़ना होगा। निजी हित को त्यागकर समाज के हित को तरजीह देनी होगी।
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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