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Fish-Rice Farming : धान उत्पादक देश में प्रमुख राज्यों में खेती के साथ मछली पालन से कमा सकते हैं दोगुन मुनाफा…

Fish-Rice Farming:

 

 

Fish-Rice Farming: ऑनलाइन बुलेटिन डेस्क : धान संग मछली पालन के तहत किसान एक साथ धान की खेती और मछली पालन कर सकते हैं। इस तरह की खेती का चलन चीन, बांग्‍लादेश, मलेशिया, कोरिया, इंडोनेशिया, फिलिपिंस, थाईलैंड में बढ़-चढ़कर है। भारत में हालांकि ये तकनीक अभी कम प्रचलित है, लेकिन इसे बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में भी झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश समेत कई इलाकों में धान संग मछली पालन के ज़रिए किसान दोगुनी कमाई कर रहे हैं। (Fish-Rice Farming)

 

धान की खेती के साथ मछली पालन – भारत में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। पूरे देश में 36.95 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है। देश में प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, बिहार, ओडिशा, झारखंड और तमिलनाडु हैं। कई बार धान फसल की कटाई के बाद किसानों को अगली फसल बोने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है। ऐसे में इस लेख में हम आपको ऐसे तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे धान की खेती कर रहे किसान दोगुना मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इस खास तरीके की खेती को धान संग मछली पालन (Fish-Rice Farming) कहा जाता है।(Fish-Rice Farming)

 

मछली की प्रमुख नस्ल (भारत में)

 

मीठे पानी में मछली पालन के लिए विशेष जाति (नस्ल) की मछलियों का ही चयन किया जाता है. इनमें प्रमुख रूप से कतला, रोहू (लेबियो), म्रगल, आदि देशी मछलियाँ प्रमुख है. इसके अलावा विदेशी मछलियों में जैसे सिल्वर कार्प, कॉमन कार्प, ग्रासकार्प को सम्मिलित किया जाता है. (Fish-Rice Farming)

 

भोजन सामग्री / मछलियों के लिए

 

जलाशय में मछलियों को दो प्रकार के भोजन की आवश्यकता होती है.

 

(Natural food)– प्राकृतिक भोजन

 

यह सूक्ष्म पादप एवं सूक्ष्म जन्तु होते है, इनका उत्पादन नियमित होता रहे, इसके लिए कृत्रिम खाद एवं उर्वरक का उपयोग किया जाता है. इसके लिए जैविक खाद और मुर्गियों की बीट डाली जाती है. जल की अम्लीयता को कम करने के लिए चुने की अल्प मात्रा भी मिलाई जाती है. प्राकृतिक भोजन के साथ साथ मछलियों की उपयुक्त एवं तीव्र वृद्धि के लिए कृत्रिम भोजन का अपना महत्व है. इनमें चावल की भूसी, अनाज के टुकड़े, चावल का चापड़, सोयाबीन, खमीर, बादाम की खली आदि प्रमुख है. (Fish-Rice Farming)

 

जीरे का संचय-

 

छोटी मछलियों को जीरा कहते है. जीरे की लम्बाई 1 से 1.5 इंच की होती है. तालाब में जीरे की निश्चित मात्रा ही डाली जानी चाहिए. तालाब में डालने से पूर्व इन्हें कुछ समय के लिए 3 प्रतिशत नमक अथवा पौटेशियम परमैगनेट के घोल में रखना चाहिए जिससे ये परजीवी मुक्त हो सके.

जीरा तीन चार माह के बाद अन्गुलिकाएं बन जाती है. इसकी लम्बाई तीन से चार इंच की होती है. यही अवस्था 6 से 12 माह में वृद्धि कर वयस्क मछली में बदल जाती है. (Fish-Rice Farming)

 

सबसे बेहतर किस तरह का खेत

 

इस तरह की खेती के लिए निचली ज़मीन वाले खेत का चुनाव किया जाता है. इस तरह के खेत में आसनी से पानी इकट्ठा रहता है. साथ ही खेत को तैयार करने के लिए जैविक खाद पर ही निर्भर रहना चाहिए. आमतौर पर मीडियम टेक्‍सचर वाली गाद वाली मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है. (Fish-Rice Farming)

 

फ़िश-राइस फ़ार्मिंग कैसे की जाती है

 

इस तकनीक के तहत धान की फसल के लिए जमा पानी में ही मछली पालन किया जाता है। धान के खेत में जहां मछलियों को चारा मिलता है, वहीं मछली द्वारा निकलने वाले वेस्ट पदार्थ धान की फसल के लिए जैविक खाद का काम करते हैं। इससे फसल भी अच्छी होती है और मछली पालन भी होता है। किसानों को इस तरह 1.5 से 1.7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति सीज़न के हिसाब से मछली की उपज मिल सकती है।(Fish-Rice Farming)

 

फ़िश-राइस फ़ार्मिंग क्‍यों बेहतर है

 

धान के खेत में मछली पालन करने की वजह से फसल को नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर रहता है। धान के खेत में मछली धान की सड़ी-गली पत्तियों एवं अन्य खरपतवारों, कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है। इससे फसल की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है, साथ ही धान के उत्पादन में भी वृद्धि होती है। साथ ही इस तकनीक से जल और ज़मीन का किफायती उपयोग होता है। धान की फसल काटने के बाद खेत में फिर से पानी भरकर मछली पालन किया जा सकता है।(Fish-Rice Farming)

 

क्‍या फायदे हैं इस तरह की खेती के?

 

  • मिट्टी की सेहत और उत्‍पाकता बढ़ती है.
  • प्रति यूनिट एरिया पर कमाई बढ़ती है.
  • उत्‍पादन खर्च कम होता है.
  • फार्म इनपुट की कम जरूरत पड़ती है.
  • किसानों के लिए एक से ज्‍यादा इनकम सोर्स बनता है.
  • पारिवारिक इनकम सपोर्ट मिलता है.
  • फैमिल‍ी लेबर का पूरा और सदुपयोग.
  • केमिकल उर्वरक पर कम खर्च
  • किसानों के संतुलित व पौष्टिक
  • किसानों की स्‍टेटस और जीविका में सुधार

 

इन बातों का रखें फ़िश-राइस फ़ार्मिंग करते हुए ध्यान

 

धान के साथ मछली पालन करते वक़्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भूमि में अधिक से अधिक पानी रोकने की क्षमता हो। खेत में पानी की उचित व्यवस्था मछली पालन के लिए आवश्यक है। इसमें किसान अपने खेत के चारों तरफ जाल की सीमा बनाकर इस पद्धति से खेती कर सकते हैं, ताकि खेत में पानी जमा रहे और मछलियां बाहर नहीं जा पाएं। धान संग मछली पालन पद्धति में मछलियों की चोरी तथा पक्षियों से सुरक्षा के उपाय पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। ध्यान रहे कि इस तरीके से मछलियों का उत्पादन खेती, प्रजाति और उसके प्रबंधन पर निर्भर करता है। इस प्रकार की खेती सीमान्त एवं लघु किसानों की आर्थिक उन्नति और प्रगति  में विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध हो सकती है।(Fish-Rice Farming)

 

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