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गुरु एक; रूप अनेक…

©पूनम सुलाने-सिंगल

परिचय- महाराष्ट्र से….


 

अज्ञान के अंधियारे में

कदम हमारे भटके होते

जो सही समय पर हमें

गुरु हमारे ना मिले होते

 

सबसे पहला रूप गुरु का

माता-पिता है होते

जो जीवन देकर हमको

जीवन जीने का ज्ञान है देते

 

शब्दों का ज्ञान दिलाने

शिक्षक ही गुरु बनकर है आते

देकर दान विद्या रूपी धन का

हमें विद्यावान है बनाते

 

कौन अपना कौन पराया

ज्ञान इसका दुनियावाले है देते

व्यवहार करना हमें सिखाया

इसलिए यह भी गुरु ही है होते

 

पतझड़ में हरियाली छुपी होती है

ज्ञान इसका पेड़ पौधे है देते

बनकर गुरु प्रकृति नजारे

मुश्किलों से लड़ना हमें है सिखाते

 

मिटाकर विकारों को हमारे

परमात्मा से जो हमें है मिलाते

जीवन नैया के बनकर मांझी

परम गुरु हमें पार है लगाते

 

??गुरुपौर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ??

 

 

पूनम सुलाने-सिंगल

 

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