नेताजी प्रणाम हमारा कबूल करो | Newsforum

©नीरज सिंह कर्दम, बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश
नेताजी प्रणाम हमारा कबूल करो
मुझ गरीब की बस्ती में भी चलो,
जहां दिया था बड़ा सा भाषण तुमने
लोगों की भीड़ जुटी थी तुम्हें सुनने ।
गली गली में घूमने तुम चलो
कीचड़ से भरी गलियों में कदम रखो,
आंख से चश्मा जरा तुम नीचे करो
मेरी बस्ती की तरफ आगे बढ़े चलो ।
बस आगे कुछ दूरी पर एक नाला है
जो टूटा हुआ, बहुत बदबू वाला है,
नाक से हाथ हटाओ, मेरे पीछे आओ
देखकर चलना, कहीं गिर ना जाओ ।
आगे वाली गली बहुत ज्यादा छोटी है
तुम्हारी सेहत पहले से ज्यादा मोटी है,
कुर्ता पहन खाकी, सर पर टोपी है
मेरी बस्ती में ना कपड़ा ना रोटी है ।
पिछली बार चुनाव में आए थे तुम
वोटों के लिए अनेक वादे लाए थे तुम,
कीचड़ फिर भी अटी हुई इन गलियों में
वादा एक भी पूरा नहीं हुआ है बस्तियों में ।
कुछ ही दूरी पर है बस्ती में घर मेरा
जहां आजतक नहीं हुआ है कोई सवेरा,
जरा संभलकर चलना यहां है गड्ढा गहरा
इंतजार है सबको कब होगा नया सवेरा ।
बस थोड़ा ओर चार कदम आगे चलो
हां यही कदम रखकर आगे तुम बढ़ो,
देखो ये बस्ती वही पिछले चुनाव वाली है
जिसे स्वच्छ बनाने की तुमने ठानी है ।
वो देखो ठीक सामने वाला घर मेरा
जिसके आगे लगा है गंदगी का डेरा,
गंदगी के ढेर को अब तो तुम बंद करो
नेताजी प्रणाम हमारा कबूल करो ।