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नाकामयाब | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

न कर बर्बाद अपना वक्त ए दीवाने जा

नसीब अपना कहीं और आज़माने जा

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तेरे अपनों को तो फुर्सत नहीं है सुनने की

किस्से अपने अब तू गैरों को सुनाने जा

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पहले से ताल्लुकात न रहे हों अब मगर

मिज़ाज़ पूछने की रस्म तो निभाने जा

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नाकामयाब हो के आखिर आ गया वापिस

कहा था तुझसे किसने कि उसे मनाने जा

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ज़रूरतों ने आ के कान में कहा मुझसे

सुबह हो गई है, चल उठ, कमाने जा

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