नाकामयाब | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा
न कर बर्बाद अपना वक्त ए दीवाने जा
नसीब अपना कहीं और आज़माने जा
तेरे अपनों को तो फुर्सत नहीं है सुनने की
किस्से अपने अब तू गैरों को सुनाने जा
पहले से ताल्लुकात न रहे हों अब मगर
मिज़ाज़ पूछने की रस्म तो निभाने जा
नाकामयाब हो के आखिर आ गया वापिस
कहा था तुझसे किसने कि उसे मनाने जा
ज़रूरतों ने आ के कान में कहा मुझसे
सुबह हो गई है, चल उठ, कमाने जा