ओहदे का नाजायज़ फ़ायदा | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
ओहदे का नाजायज़ फ़ायदा उठाते देखा।
भरी महफ़िल इज़्ज़त की धज्जियां उड़ाते देखा।
पैरों से कुचल कर रख दिया इंसानियत को,
हर बड़ी मछली को छोटे को खाते देखा।
रुतबे का अकड़, ज़माने भर को दिखाता,
जीत का परचम लहराने, नीचे को दबाता,
ज़ुल्म की आंधियां चलती एक ज़िद बनकर,
जो भी आती ज़द में, बेमौत मारा जाता।
घर, दफ़्तर या हो अपना ये मुआशरा,
आवाज़ बनना चाहते सभी, मिलता नहीं आसरा,
चलती नहीं दुनिया, जूते के कील की नोक पर,
ज़ुल्म की आग तले हर कोई है बे- आसरा।
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