फलसफा | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
दीवारों पे लिखकर उसका नाम मिटाने लगे।
पूछा कहते इस नाम को दिल में बसाने लगे।।
तकदीर एक दिन मिला देगी दोनों को जरूर।
ऐसे काम आफ़ते जिन्दगी को हंसाने लगे।।
मसीहा कहलाने वालों के काम कितने जाहिल।
मासूम बच्चों को हक्क के लिए रूलाने लगे।।
रोज मिलने से सलाम आदाब को भूलगये ।
क्या खूद को उनकी राहों से हटाने लगे ।।
कई दिन होगये उनसे लड़ाई हुई थी पर ।
उनसे मिलने के लिए बड़े ही जमाने लगे ।।
पत्नी बनाकर उसे बेगम बनाया सर पर गम।
तमाम उम्र मेहनत करके उसे हंसाने लगे।।
‘शहज़ाद ‘ज़िन्दगी का फलसफा कौन समझता है।।
जो समझे वो अपनी हयात को बचाने लगे ।।