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तन्हाई…

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

धुँदली शामों में फिरती रहती है कोई परछाई,

के लगता है मौत तक साथ देंगी मेरी ये तन्हाई।

 

न कोई आहट ,न कोई साया तन्हा रातों में,

हर ज़ख्म हुए है चश्म-ए-एहसास की पुरवाई।

 

सिसक रहे है अंधेरे कोई अब चराग़ जलाओ,

वीरान रात में मेज़ पे पड़ी वीरान कोई दानाई।

 

आँखों की क़िंदील से उतरे रूह की गहराई में,

लो देखिए आज क़ज़ा ले के कहाँ मुझे आई ।

 

हर रात खुद को मिल लेता रातों की तन्हाई में,

चमकते दर्द से उभरता रहा है कलाम ए तन्हाई ।

 

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