पुरखा जबाना के रोटी पीठा | newsforum

©सतीश यदु, बेमेतरा, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ म मनाथे संगवारी,
बारो महीना तिहार।
दिन भर उपास रहिथे अउ
संझउती करते फरहार।।
किसम किसम के रोटी पीठा
नुनहा त कतको गुरहा।
रंग घलो सादा पिंवरा
कइठन चेम्मर गुजगुजहा।।
चीला रोटी अड़बड़ लुदलुदही
जुड़ाय म अंटियाथे।
गरम गरम कहूँ खाबे त
बंगाला चटनी म मीठाथे।।
ठेठरी रोटी गोलवा लमहरी
तीजा पोरा के चिन्हा आय।
खुरमी बना ले तिली डार के
दुनो संग बिकट मिठाय।।
पितरहा बरा ल का कहिबे संगी
दही संग म बोर खाले।
गुलगुल भजिया गहूँ पिसान के
मस्कुरा म दबाले।।
खोंटवा देहरौरी एके बरोबर
बरा के मुहरन दिखथे।
चाउर पिसान के अइरसा हा
गुड़ के पाघ म लपटथे।।
चौसेला ह चकचक ले पड़रा
फरा सहीं एखर रंग।
अंगाकर रोटी सबो दिन बनथे
छत्तीसगढिहा मनके संग।।
भजिया अउ सोंहारी के
कोनो खास नइये तिहार।
सगा नेवता करे बर
बारो महीना बारम्बार।।
चाउर पिसान के बोबरा चीला
गुड़ मिंझरा ताय।
गुरतुर गुरतुर गुरहा मीठाथे
फली तेल म छनाय।।
पपची होथे चुरदुंग चुरदुंग
सुहाथे गजब गुरतुर।
गहूँ पिसान के ऐला बनाले
हाबय अड़बड़ मशहूर।।
मलपुआ के झन पूछ सेवाद
तेल ऐहर म तराय।
चाउर पिसान के ये रोटी
सबके मन ल भय।।