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निर्झर जैसी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

दिलों दिलों को प्रेम और स्नेह से जोड़ती,

निर्झर जैसी ये अपनी धुन है ।

लफ्ज़ लफ्ज उसी धुन का है प्यार भरा,

नफ़रत भरें मन को भी वो पिघलाती है।

 

कल-कल बहता निर्झर निर्मल ,

खेतों में हरियाली की बहार लाता है।

वो नहीं देखता कभी राजा और रंक,

इस संसार में वो ही सभी की प्यास बुझाता है।

 

पेड़ पौधे,पशु पक्षी इन्सान और जानवर,

सभी की जरूरत है ये बहता निर्झर।

ऐसी ही होती है ये सप्तसूरों की धुन,

वहीं धुन किसी किसी के लिए बन जाती है जीवन।

 

धुन प्रेम बरसाती हो या हो विरह की गाथा,

वहीं धुन मन में छाई उदासी दूर कर जाती है।

नए नए रंग ख्वाबों में भरकर वो ही,

हारे हुए जिंदगी को भी नया मोड़ दिखलाती है।

 

दिलों दिलों को प्रेम और स्नेह से जोड़ती,

निर्झर जैसी ये अपनी प्यारी धुन है।

निर्मल बहता निर्झर और मधुर धुन ही,

सारे संसार में सुख समृद्धि और खुशहाली भर देती है।

 

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