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पथिक | Onlinebulletin

साहित्यकार स्व. मोहनलाल रवि


 

चल पथिक तू चलता चल

जीवन पथ नव गढ़ता चल

कदम में कदम मिलाता चल

देश का मान बढ़ाता चल

मान का पान चबाता चल

चल पथिक…….

जात पात दीवार फांदकर

एकता का नव बांध – बांधकर

विश्व बंधुत्व का मंत्र जापकर

जयतिजय शर साधकर

लक्ष्य की ओर सरकता चल

चल पथिक…..

समता का पाठ पढ़ाता चल

त्रिवेणी सदा बहाता चल

नव पीढ़ी नव पथ बनाता चल

सुप्रभात की मशाल जलाता चल

चल पथिक,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

नव पीढ़ी, प्रकाश नव दिखाता चल

कीचड़ में हो सटे उसे उठाता चल

दुबक गया है भय से, निर्भय बनाता चल

होगा कर्णघार देश का,

गले से लगा कर चल ।

चल पथिक तू चलता चल

मन की खोट मिटाता चल

चल पथिक तू…..

 

हो लाख मुसीबत राहों पर

धैर्य की मशाल जलाता चल

हो लाख जीवन की मजबूरियां

कर्म पथ पर तू मुस्काता चल

प्रकृति देती है हमें

पल-पल अनुपम बल

दिखाती रहती है हमें

सागर में कहीं धरातल

सिखाती रहती है सदा

केवल नहीं है दल दल

केवल नहीं है दल दल

चल पथिक तू चलता चल…..

 

 

©इंदु रवि, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश       


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