स्वार्थी इनसान | Newsforum
©आज़ाद सिंह कर्दम, हापुड़, उत्तर प्रदेश
इतना बेपनाह प्यार करता था वो मुझे कि मैं उससे जुदा न हो सकूं, इसलिए मुझ सजीव की तस्वीर बनाकर उसने मुझे निर्जीव कर दिया !
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।
अब उसकी आंखों के सामने तो रहूंगी पर उससे कुछ कह न सकूंगी,
अब उसे कौन समझाए उसकी मर्जी के बिना अब मैं न हिल भी सकूंगी !
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।
काश ! वो मुझे न चाहकर मेरी जिंदगी को चाहता,
काश वो मुझे मूरत न बनाकर बस मुझे पानी लगाता,
लेकिन अब तो मैं उससे कुछ भी न कह सकूंगी !
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।
उसका व उसकी आने वाली पीढ़ियों का भी मैं आंचल भर देती,
फल, फूल, पत्ती और न जाने क्या-क्या मैं उसे दे देती,
लेकिन अब मैं अपने दीदार के अलावा उसे कुछ न दे सकूंगी !
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।
बाद में पता चला वो तो एक कलाकार था,
यूं सजीव पेड़ों को निर्जीव बनाना ही उसका प्यार था,
मुझे परवाह नहीं वो कुछ भी करे लेकिन मैं उससे अपने प्यार का इंतकाम जरूर लुंगी !
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।
बड़ी शिद्दत से वो करता था अपना काम,
गांव-गांव शहर-शहर मशहूर हो रहा था उसका नाम !
लेकिन वो कितना भी मशहूर क्यों न हो जाये मैं तो उसे धोखेबाज ही कहूंगी !
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।
मशहूर होने के साथ-साथ वो कमा रहा था हमें बेचकर मुंह मांगे दाम,
बना रहा था वो हमारे शरीर से विभिन्न प्रकार के सामान,
लेकिन वो कितना ही अमीर क्यों न हो जाये मैं तो उसे नमक हराम ही कहूंगी!
कैसा ये इश्क है गजब का इश्क है।