व्यस्तता में भींगे तुम | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
बारिश की व्यस्तता की बूंद में जबसे भींगने लगे,
जोश तो बहुत था बाक़ी, क्या हुआ जो थकने लगे।
दिल की बातें आंखों से पढ़ लिया करते थे कभी,
दर्द ए ज़ुबान सुन कर भी अब तुम हंसने लगे।
व्यस्तता का रंग जबसे अस्तित्व पे चढ़ने लगा,
एहसास की क़ब्र पे फूल चढ़ाकर आगे बढ़ने लगा,
जज्बातों की हसीन वादियां, दफन होकर रह गईं,
नशा दौलत का रख व्यस्तता का जाम चखने लगा।
चादर व्यस्तता की ओढ़ कर, स्वयं को गंवा रहे,
जिस दिशा में बह रही हवा उसी दिशा में बह रहे,
स्वयं के आस्तित्व को यूं मिटा न कभी हथेली से,
व्यस्तता से लौट आ, हक़ीक़त से रूबरू करा रहे।
व्यस्तता से लौट आ, हक़ीक़त से रूबरू करा रहे।