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किसान सभा ने कहा- खेती किसानी, कोरोना राहत और जन स्वास्थ्य से जुड़ी मांगों पर 30 अप्रैल को लेकर प्रदेशभर में करेगी प्रदर्शन | Newsforum

रायपुर | छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा खेती-किसानी, कोरोना राहत और जन स्वास्थ्य से जुड़ी मांगों पर 30 अप्रैल को पूरे प्रदेश में प्रदर्शन करेगी। इन मांगों में नए कृषिक कानूनों को वापस लेने और सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून बनाने, सभी परिवारों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो गेहूं-चावल, 1 किलो दाल और 1 किलो तेल मुफ्त देने, गैर-आयकरदाता सभी परिवारों को प्रति माह 7500 रुपए नकद मदद देने, रोजगार गारंटी में 600 रुपए की मजदूरी और 200 दिन काम देने, सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने, सार्वभौमिक टीकाकरण के लिए राज्यों को मुफ्त टीके उपलब्ध कराने, स्वच्छ और सर्वसुविधायुक्त क्वारंटाइन केंद्रों को खोलने और सभी अस्पतालों और मरीजों को ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने की मांगें शामिल हैं। कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए छत्तीसगढ़ किसान सभा पूरे प्रदेश में 30 अप्रैल को प्रदर्शन करेगी।

 

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में धरनारत किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ‘ऑपेरशन क्लीन’ योजना बनाने की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि तीनों कानून वापस लिए जाने तक देशव्यापी किसान आंदोलन जारी रहेगा। यह आंदोलन देश की समूची अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण के खिलाफ आम जनता का देशभक्तिपूर्ण आंदोलन है और इसका दमन करने, फूट डालने या इसे बदनाम करने की मोदी सरकार की साजिशें सफल नहीं होंगी।

 

किसान सभा नेताओं ने कहा कि राज्य सरकारें लॉकडाऊन करने के लिए बाध्य हुई है और लाखों प्रवासी मजदूर फिर से घर-वापसी के लिए बाध्य हुए हैं। लोगों की आजीविका खत्म होने का नतीजा यह हो रहा है कि वे भुखमरी का शिकार हो रहे हैं और सूदखोरों के चंगुल में फंस रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार ने पीड़ित लोगों की मदद के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं, जबकि उन्हें मुफ्त अनाज और नकद आर्थिक सहायता की सख्त जरूरत है।

 

किसान सभा ने सरकार की वैक्सीन नीति की भी तीखी आलोचना की है तथा कहा है कि यह नीति आम जनता के एक बड़े हिस्से को टीकाकरण से दूर करेगी, जिससे कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाना मुश्किल होगा। जन स्वास्थ्य क्षेत्र के निजीकरण का नतीजा यह स्पष्ट दिख रहा है कि केंद्र सरकार के संरक्षण में दवा कंपनियां इस बीमारी को अपनी जीवनरक्षक दवाओं पर अनाप-शनाप मुनाफा कमाने के अवसर के रूप में देख रही है। कोविशील्ड की तीन अलग-अलग कीमतें इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। किसान सभा ने मांग की है कि मुफ्त सार्वभौमिक टीकाकरण के लिए केंद्रीय बजट में इस हेतु आवंटित 35000 करोड़ रुपयों का उपयोग किया जाए।

©संजय पराते की रपट, अध्यक्ष, किसान सभा

☎️?094242-31650


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