किताबें हुई महंगी तो…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
किताबें हुई मंहगी तो कुछ रोटियां कम करना,
शिक्षा की ओर बढ़ते कदम,रोटी के लिए मत रोकना।
शिक्षा न मिलें गरीबों को यही नीति दोहराई जा रही है,
किताबें मंहगी करके,देखो शिक्षा भी छीनी जा रही है।
शिक्षा पे कर और घोटाले बाजों के कर्जे माफ़ हो रहे है,
समझों उनकी नीतियां खेल नया वो यहां खेल रहे है।
कौन अच्छा कौन बुरा,ये जनता उतनी भी नादां नहीं है,
मत छीनो स्वतंत्रता हमारी,ये कोई हमारी कमजोरी नहीं है।
आज़ाद देश में भी अब,नई क्रांति की ज़रूरत है,
बदली हुई राजनीति को ही,अब बदलने की ज़रूरत है।
ये मत सोचो तुम,की फिर से कोई क्रांति नहीं होगी,
देखो उन्हीं शहिदों का लहू,आज भी हमारे रगो में बहता है
किताबें हुई मंहगी तो कुछ रोटियां कम करना,
शिक्षा की ओर बढ़ते हुए,तुम्हें सूरज है बनना ।
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