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मेरा ठहरे नहीं विश्वास | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©संतोषी देवी

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

बिन नारी संसार अधूरा,

छलते रहे जज्बात हो।

शब्द रूपा सुरभिता कहते,

कहते रहे जलजात हो।

इतना हित साधक फिर मेरा,

क्यों सोया रहा उल्लास।

गिद्धों सी आती बू,

मेरा ठहरे नहीं विश्वास।

 

माली खुद को तुम कहते हो,

जग की जिम्मे रखवाली।

मन उर्वरता भरते रहते,

अहसास नहीं हो खाली।

फिर क्यों मेरे उर अंतर में,

यह भाव नहीं आभास।

दुशासन सी परछाई,

मेरा ठहरे नहीं विश्वास।

 

साहस वीरता की अनुकृति,

बनती मर्यादित पहचान।

कहते रिश्ता पाग रही मैं,

ओर आन-बान अभिमान।

छुपी-छुपी क्यों रहती अक्सर,

देखकर साया तेरा पास।

आखेटक से लगते हो,

मेरा ठहरे नहीं विश्वास।

 

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