Land of Buddha : अयोध्या; जहां आज भी एक विशाल स्तूप में बुद्ध के केश व नख सुरक्षित दबे हुए हैं, उस गौरव को उजागर करने में सर कनिंघम का अमर योगदान…
Land of Buddha :
©डॉ. एमएल परिहार
परिचय- पाली,जयपुर
Land of Buddha : अयोध्या; जहां आज भी एक विशाल स्तूप में बुद्ध के केश व नख सुरक्षित दबे हुए हैं, उस गौरव को उजागर करने में सर कनिंघम का अमर योगदान…
कोसल गणराज्य का नगर अयुज्झा (अयोध्या) भगवान बुद्ध के समय एक प्रसिद्ध धाम्मिक केंद्र था. जहां शाक्य मुनि बुद्ध ने अनेक बार उपदेश दिए थे. सम्राट अशोक तथा पूर्व के शासकों ने बुद्ध के सम्मान में यहां कई स्मारक बनवाये. चौथी सदी में फाहियान तथा सातवीं सदी में आए बौद्ध यात्री भिक्षु ह्नवेनसांग ने अपनी यात्राओं में अयोध्या के बौद्ध इतिहास का पूरा वर्णन किया है. जिसकी पुष्टि पुरातत्व सर्वे में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी. (Land of Buddha)
अयोध्या की प्रजा ने भगवान बुद्ध के लिए एक विशाल बुद्ध विहार बनवाया था जो नदी के मोड़ पर स्थित था. संयुक्त निकाय नामक बौद्ध ग्रंथ के अनुसार शास्ता बुद्ध ने यहां छ: साल तक महत्वपूर्ण उपदेश दिए थे. जिसमें सम्यक दृष्टि निर्वाण तक ले जाने वाला उपदेश प्रमुख है जो ‘प्रथम दारुखंदसुत्त’ के नाम से प्रसिद्ध है. उसी स्थान पर सम्राट अशोक ने दोसौ फीट ऊंचा स्तूप बनवाया. इसके पास ही सात फीट ऊंचा एक अद्भुत वृक्ष था जो न बढ़ता था और न घटता था. दरअसल भगवान बुद्ध ने दातुन करके जमीन में गाड़ दिया था जो बाद में फूट कर वृक्ष बना. विरोधी शासक पुष्यमित्र ने घृणावश इस वृक्ष को काट डाला लेकिन फिर यह फूट कर हरा भरा हो जाता था.(Land of Buddha)
वृक्ष के पास ही चार पूर्व बुद्धों के टहलने का स्थान (चंक्रमण स्थल )था. इसके पास एक विशाल स्तूप में भगवान बुद्ध के केश व नख सुरक्षित रखे गए थे. पास ही एक छोटा जलाशय भी था.
सम्राट अशोक के समय में अयोध्या अत्यंत महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र रहा. अशोक ने विशाल बुद्ध विहार और कई संघाराम (भिक्षु निवास) बनवाए. उस समय तीन हजार भिक्षु रहते थे. इसके अलावा प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य और उनके कार्यों का भी वर्णन मिलता है.(Land of Buddha)
सन् 1862 में जनरल कनिंघम ने इस भूभाग का पुरातत्व सर्वेक्षण करवाया और सभी बौद्ध स्मारकों की पहचान की. ह्वेनसांग की यात्रा में वर्णित विशाल संघाराम (विहार) वर्तमान सुग्रीव पर्वत है. इसकी विशालता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 1862 में यह पाचसौ फीट लंबा और तीनसौ फीट चौड़ा था. इसके पास ही दोसौ फीट ऊंचा स्तूप था जिसे कनिंघम ने मणि पर्वत बताया, जो सारनाथ के प्रसिद्ध धमेक स्तूप के समान था. केश व नख के स्तूप की पहचान कुबेर पर्वत से की. जलाशय की पहचान वर्तमान गणेश कुंड हैं.(Land of Buddha)
अयोध्या में दातुन कुंड आज भी मौजूद है. गौतम बुद्ध जब अयोध्या में रहते थे तो इसी कुंड के जल से आचमन करते थे और दातुन भी यही गाड़ा था जो पेड़ बन कर कई सदियों तक रहा. अयोध्या में मणि पर्वत, सुग्रीव पर्वत, कुबेर पर्वत तीनों इस समय मिट्टी के ऊंचे टीलों के रूप में हैं.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि मौर्य वंश को साजिश के तहत ध्वस्त कर शुंग शासक पुष्यमित्र शुंग (राम) ने शुंग राज्य की स्थापना की. इस उपलक्ष में अश्वमेघ यज्ञ करवाया. बौद्ध भिक्षुओं व सभी स्मारकों को तबाह किया गया. बुद्ध की दातुन से बने वृक्ष को कई बार नष्ट किया गया. (Land of Buddha)
इस प्रकार देशी और विदेशी आक्रमणों से सारे स्मारक दब कर सैकड़ों साल गुमनाम रहे. आख़िर ब्रिटिश काल में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा चीनी बौद्ध भिक्षुओं के यात्रा विवरण के आधार पर पुरातत्व सर्वे में इसकी पुष्टि हुई.
संदर्भ- उ.प्र. के बौद्ध केंद्र, प्रो.अंगनेलाल, हिंदी संस्थान, लखनऊ.
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