धरती तुम्हें पुकारें….

©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
धरती तुम्हें पुकारें,
देखो रूकी है बहारें
भूलों ना तुम मुझको,
उसी कल के लिए।
पेड़ पौधे हरियाली,
देगी तुम्हें खुशहाली
मुझसे जुड़ा संसार,
खुशियों संग जिएं।
स्वार्थ छोड़ दो अपना,
जल जायेगा सपना ,
कुल्हाड़ी मत चलाओ,
मिली सांसों के लिए।
हरी-भरी प्यारी सृष्टि,
पूरे संसार की दृष्टि ,
धरती तुम्हें पुकारें ,
वो अंधेरा ना छाए।

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