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मेनका गांधी अमेठी की राजनीतिक विरासत खुद संभालना चाहती थीं, सास ने ही फेर दिया था अरमानों पर पानी

नई दिल्ली
बात 1981 की है। संजय गांधी की मौत (23 जून, 1980) के बाद अमेठी संसदीय सीट पर उप चुनाव होने वाले थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संजय की इस सीट पर बड़े बेटे 37 वर्षीय राजीव गांधी को उतारना चाहती थीं, जबकि संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी अमेठी की राजनीतिक विरासत खुद संभालना चाहती थीं। हालांकि, उस समय उनकी उम्र 25 साल नहीं हुई थी, जो देश में सांसद का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु होती है। तब मेनका ने अपनी प्रधानमंत्री सास (इंदिरा गांधी) से संविधान संशोधन कर चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु को 25 साल से कम करने का आग्रह किया था।

राजनीतिक टिप्पणीकार और लेखक राशिद किदवई ने अपनी किताब '24 अकबर रोड: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द पीपुल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस' में लिखा है कि 1981 के अमेठी उप चुनाव में मेनका गांधी ने राजीव गांधी के नामांकन दाखिल करने के बाद उन्हें चुनाव से किनारे करने की बहुत कोशिश की थी। किदवई ने अपनी किताब में पूर्व राजनयिक मोहम्मद यूनुस का उल्लेख किया है, जो गांधी परिवार के करीबी थे। किदवई ने मोहम्मद यूनुस के हवाले से लिखा है, "चूंकि मेनका उस समय 25 वर्ष की भी नहीं थीं, जो भारत में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु है, इसलिए वह चाहती थीं कि इंदिरा गांधी उन्हें संसदीय चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु को घटाने के लिए संविधान में संशोधन करें लेकिन प्रधान मंत्री ने मना कर दिया था।"

दरअसल, मेनका गांधी हर हाल में अमेठी संसदीय सीट को अपनी राजनीतिक विरासत बनाना चाहती थीं, जिसे इंदिरा गांधी मानने को तैयार नहीं थीं। मेनका संजय गांधी के साथ भी उस इलाके में काफी सक्रिय थीं। वह चाहती थीं कि जिस तरह फिरोज गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने रायबरेली संसदीय सीट पर राजनीतिक विरासत संभाली थी, ठीक उसी तरह वह भी अमेठी सीट पर अपने पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएं। तब राजीव गांधी अमेठी से जीतकर संसद पहुंचे थे। बावजूद इसके मेनका ने अमेठी से किनारा नहीं किया और दो साल के अंदर उन्होंने करीब 22 बार इस इलाके का दौरा किया था।

मेनका ने जब अमेठी को ही अपनी राजनीतिक विरासत बनाने की जिद पकड़ी तो इंदिरा गांधी उनसे खफा हो गईं। प्रधानमंत्री आवास के अंदर सियासी महत्वकांक्षा की इस लड़ाई ने सास-बहू और जेठानी के बीच चौड़ी खाई बना दी थी। 28 मार्च, 1982 की रात को इस पारिवारिक लड़ाई ने तब नाटकीय मोड़ ले लिया, जब मेनका गांधी अपने दो साल के बेटे वरुण को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री आवास 1 सफदरजंग रोड से निकल गईं। स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो ने अपनी किताब 'द रेड साड़ी' में लिखा है उस दिन मीडियाकर्मियों और पुलिस कर्मियों के सामने ही मेनका गांधी अपने बेटे वरुण के साथ दिल्ली में प्रधान मंत्री के 1, सफदरजंग रोड स्थित आवास को छोड़कर चली गई थीं।

1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। 1984 के लोकसभा चुनावों में जब फिर से राजीव गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने पहुंचे तो मेनका गांधी उनके मुकाबले में खड़ी हो गई थीं। तब वह अपने छोटे से बेटे को लेकर चुनावी सभाओं में जाती थीं। मेनका ने तब निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने जेठ के खिलाफ चुनाव लड़ा था। उनकी लड़ाई सिर्फ जेठ नहीं बल्कि एक प्रधानमंत्री से थी। उस चुनाव में मेनका की जमानत जब्त हो गई थी। इसके बाद दोबारा फिर कभी वह अमेठी चुनाव लड़ने नहीं गईं।

 


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