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मानवता की रीत | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

मानवता की रीत

निभा लो

सबको अपने मित

बना लो

समानता की राह

अपना लो

सबको अपने गले

लगा लो

प्रेम बंधुत्व से घर

सजा लो

मानवता की रीत

निभा लो

पुष्प अलग होकर

भी कैसे

माला में गुंथकर

एक हो जाते

फूलों को एक बनाने

वाली

उस डोरी सा सब

बन जाओ

छोटे- बड़े का भेद

मिटा दो

मन में प्रेम का फूल

खिला दो

मानवता की रीत

निभा लो

प्रेम बंधुत्व की होने

दो वर्षा

सबके चेहरे पर अब

हो हर्षा

इंसान को इंसान

ही मानों

सबके दु:ख को अपना

जानो

अब तो ऐसे राह

बना लो

जिस पर चलने से सबका

भला हो

ना कोई छोटा बड़ा

ना कोई खोटा खरा

मानवता की सोच

हो सब में

भाईचारा ही दिखे

जग में

गायेंगे अब सब

मिलकर

कोई ऐसा गीत

बना लो

मानवता की रीत

निभा लो

सबको अपने गले

लगा लो

ना हो राह अब

युद्ध का

राह हो बस

बुद्ध का …


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