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भूख बनी है इम्तिहान…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र


 

जलाकर अरमानों की होली ये जिंदगी हम जीते है,

इम्तिहान बनी इस जिंदगी में, सिर्फ रोटी का ख्वाब हम देखते है।

 

मशीनों के दौर में,सभी हाथों को यहां रोजगार कहां मिलता है,

ऐसे हालातों में यहां पर हमारा चुल्हा भी हर दिन कहां जलता है।

 

गरीबों के मोहल्ले में ही हर पल मुसीबतों का मेला लगा रहता है,

सुखों के पल तो वहां पर कभी-कभी मेहमान बनके आते है।

 

गमों के वरदानों से ही तकदीर ने हमें मालामाल किया है,

और क्या मांगें हम उस तकदीर से,जो हमपे इतनी मेहरबां हुई है।

 

बढ़ती मंहगाई की आग में,पल-पल हम यहां जल रहे है,

कौन देखें ये हाल हमारा,महलों में कहां वो आग लगी है।

 

रिश्तेदार कौन-कौन हमारे,यही सवाल कुछ लोग हम से पुछते है,

मुसीबतों से हमारा नाता,गमों का सागर ही हमारे आंगन में है।

 

उजड़ा हुआ मंजर देखने के लिए वो कभी-कभी आते है,

वोटों के सौदागर है जो,कभी-कभी फरिश्तों का नकाब वो लगाते है।

 

जलाकर अरमानों की होली,ये जिंदगी हम जीते है,

भूख बनी है इम्तिहान,उसी का हल ढूंढते ढूंढते ये सांसें भी टूट जाती है।

 

 

Gaikwad-Vilas-Latur-Maharashtra
गायकवाड विलास

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