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ऑनलाइन बुलेटिन : बुद्ध का धम्म दो देशों के बीच सांस्कृतिक एकता, मैत्री भाव और घनिष्ठता कैसे बढ़ाता है… Buddha’s Dhamma

सारनाथ (मृगदाव / रिषिपत्तन) धम्म यात्रा -2

Buddha Dhara of Sarnath
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Buddha’s Dhamma : Among the Buddha Viharas of many countries in Sarnath, there is one beautiful Vihara of a small country like Myanmar. What a young highly educated Bhikkhu told here is worth paying attention to for us Indian Buddhists who are fighting among ourselves in the name of position, prestige, name, institution, supremacy, vihara etc.

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : बुद्ध का धम्म दो देशों के बीच सांस्कृतिक एकता, मैत्री भाव और घनिष्ठता कैसे बढ़ाता है…. सारनाथ स्थित म्यांमार के भव्य बुद्ध विहार के युवा उच्च शिक्षित भिक्खु की बात पढ़कर आप भी कहेंगे.. हां, यही सही मार्ग है.(Buddha’s Dhamma)

Buddha's Dhamma

सारनाथ में कई देशों के बुद्ध विहारों में एक है म्यांमार जैसे छोटे देश का सुंदर विहार. यहां एक युवा उच्च शिक्षित भिक्खु ने जो बात बताई…वह पद, प्रतिष्ठा, नाम, संस्था, वर्चस्व, विहार आदि के नाम पर आपस में ही उलझ रहे हम भारतीय बौद्धों के लिए गौर करने लायक है.

 

विहार के दर्शन कराते हुए उन्होंने बताया कि दो देशों के समान धम्म, विचार, संस्कृति के आधार पर मैत्री घनिष्ठ हो जाती है. (Buddha’s Dhamma)

 

विहार प्रांगण में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा के चरणों में दोनों और मिगारमाता विशाखा की प्रतिमा, दूसरी ओर श्रावस्ती के सेठ महादानी अनाथपिंडिक की प्रतिमा, बुद्ध की प्रेम, करुणा और मैत्री को विश्व में पहुंचाने वाले सम्राट अशोक की प्रतिमा, और म्यांमार के अशोक किंग त्राण न्हान तोंग की प्रतिमा स्थित है. यानी दो देश एक प्राण.

 

विहार का मुख्य द्वार सांची के स्तूप के द्वार का प्रतिबिंब है जिस पर भगवान बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं की प्रतिमाएं अंकित है. यहां एक विशाल अशोक स्तंभ है.(Buddha’s Dhamma)

 

इस प्रकार म्यांमार और अन्य कई देश पूरी तरह से बुद्ध भूमि भारत के प्रति श्रद्धा से विनम्र और कृतज्ञ हैं अर्थात दोनों देशों के विचार, संस्कृति और आदर्श एक हैं ऐसे में दोनों के घनिष्ठता और मैत्री भाव कभी टूट नहीं सकते. यही धम्म प्रचार का आधार है.

 

युवा और उच्च शिक्षित भिक्खु के यही विचार हमें भारतीय बौद्धों को इशारा कर बता रहे है कि बुद्ध का धम्म शोरगुल, धूम धड़ाके, प्रदर्शन, जुलूसों, नाच गाने की शोभायात्रा, वाद-विवाद , भाषणबाजी, भिक्षुओं के कर्मकांड आदि का धम्म नहीं है इनसे तो धम्म आगे बढ़ने की बजाय घृणा का पात्र बन जाएगा.(Buddha’s Dhamma)

 

दूसरों को कोसने आलोचना, निंदा, क्रोध की बजाय प्रेम, भाईचारे, शांति, सूझबूझ और मिलजुल कर ही आगे बढ़ा सकते हैं. हम अपनी बात को बौद्धिक स्तर पर रख कर ही कुछ हासिल कर सकते हैं. भारतीय समुदायों के बीच उसी ढंग से धम्म वाणी का प्रचार करना है जिस प्रकार तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक, अनागारिक धम्मपाल, राहुल सांकृत्यायन, बाबासाहेब आंबेडकर और एस एन गोयनका जी आदि ने किया था.

 

इसी रास्ते से तथागत बुद्ध की धम्म वाणी को विभिन्न समुदायों और देशों के जन जन तक फैलाया जा सकता है. इसके अलावा मार्ग निराशा, बिखराव, आपसी टकराव और पतन का मार्ग है.(Buddha’s Dhamma)

 

भवतु सब्बं मंगल.. सबका कल्याण हो.. सभी प्राणी सुखी हो 

 

Buddha's Dhamma
डॉ. एम एल परिहार

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