सीख | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©नरेन्द्र प्रसाद सिंह
हंसना और हंसाना,
भौंरों से सीखा है मैंने
गीत छंद में गाना
राही! इसे भूल मत जाना।
बांसों से सीखा है मैंने
झुकना और झुकाना,
घासों से सीखा है मैंने
मुरझाना – हर्षाना,
राही! इसे भूल मत जाना।
ठेसों से सीखा है मैंने
उठकर बढ़ते रहना,
द्वेषों से सीखा है मैंने
झूठ – मूठ का ताना,
राही! इसे भूल मत जाना।
भूलों से सीखा है मैंने
इसे नहीं दुहराना,
शूलों से सीखा है मैंने
चुभ कर ख़ून बहाना,
राही! इसे भूल मत जाना।
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