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ऐ अन्धेरे | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©डॉ. अलका अरोडा

परिचय- देहरादून


 

 

 

ऐ अन्धरे तूने मुझे बहुत रुलाया है

समेट कर सारी रोशनी मुझे सताया है

तुझ से दूर जाने के किये बहुत यतन

जाने क्यूं मेरी जिन्दगी को बसेरा बनाया है

ऐ अन्धेरे तूने वाकयी बहुत रुलाया है

समेट कर सारी रोशनी मुझे सताया है

 

कौन सी धुन मे आता है ना मालूम क्या चाहता है

तुझसे सब भागते है जाने कौन सा रिश्ता बताता है

मायूसी उदासी परेशानी तकलीफे सब तेरे साथी है

कब तक चलोगे, अपने घर क्यूं नहीं लौट जाता है

ऐ अन्धेरे तूने वाकयी बहुत रुलाया है

समेट कर सारी रोशनी मुझे सताया है

 

सितम पर सितम ढाये हैं जुल्म की है कई कहानियाँ

रोशनी से लड़कर तूने बसाया अपना अलग जहाँ

अब गिरा भी दे ये काली अन्धेरी तामसी दीवार

जुगनु की कतार से क्यूं नहीं एक नया जहाँ बसाता है

ऐ अन्धेरे तूने वाकयी बहुत रुलाया है

समेट कर सारी रोशनी मुझे सताया है

 

तेरी दस्तक अर्श से फर्श तक लाती है, जो ठीक नहीं

तेरी खामोशी भी कहर ढाती है, वो भी ठीक नहीं

वक्त के हाथो छलकर भी मुस्कुरा कर बढ़ जाता है

तूने निर्जन रास्तो पर ले जाकर हमे बहुत थकाया है

ऐ अन्धेरे तूने वाकयी बहुत रुलाया है

समेट कर सारी रोशनी मुझे सताया है

 

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