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वह लता | ऑनलाइन बुलेटिन

©गुरुदीन वर्मा, राजस्थान


 

दरख़्त से लिपटी हुई वह लता,

जो पुलकित कर देती है मन को,

अविराम हवा की भांति,

गतिशील रखती है मेरे विचारों को,

चाहे वह है स्वप्न मेरे लिए,

अविस्मरणीय याद मेरे लिए।

 

उसकी मौन अभिव्यक्ति,

जो सृजित होती है मेरी कलम से,

हर महफ़िल में शिरकत में,

हर कोई पूछता है प्रश्न मुझसे,

मेरी रचना को देखकर ,

वह अलभ्य है मेरे लिए,

और मुश्किल मेरा उस मंजिल तक,

पहुंचना और उसको सीने से लगाना।

 

मगर मुझको विश्वास है कि,

कुछ भी हो फिर भी वह,

नहीं मुझसे अपरिचित,

और नहीं हूँ मैं दूर,

उसकी स्मृति में ,

उसकी बातों और दर्द में।

 

लेकिन वह करीब है,

हर पल मेरे विचारों में,

मेरे अदब और मेरे रचना में,

मेरे काव्य की प्रेरणा बनकर,

काव्यात्मा बनकर हर वक़्त,

  • जिसको स्वीकार करता है,

यह संसार और हर कवि।

 

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