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बेटा ला सुधारौ जी | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

लाड़ प्यार से पाल पोस के

बेटी ला हम बड़े करेन

सुग्घर संस्कृति आउ

रीति-रिवाज

ल बेटी के मन मा भरेन

बेटी तो धर के पहुंना ये

एक दिन ओला बिदा करेंन

फेर चिंता ओकर

भविष्य के करथव

समाज मा सब लड़का

मनके करम देखथव

मोरों घर मा दु बेटी,

दु बेटा हावय

बेटी मन

सुग्घर पढ़त-लिखत हे

आउ दाई के संग

सब बुता करत हे

फेर बेटा मन ला देखथव

ता निंद ना परय

संगती म परके

नशा के लत मा

बेटा मन माते हावंय

रोज रोज मन मऊंहा पिके

घर मा उधम मचावंय

बेटा मन ला सुधारे के

कतका मैं जतन करेंव

झन पिया ऐ जहर ला

रोज उकंर पांव परेंव

जब समाज मा बेटा मन के

अईसनहे हालत रईही

त बेटी मन कईसे संगी

सुग्घर जीवनसाथी पांही

ता समाज लें एक ठन

विनती हावय

बचपन लें बेटा मन ला

बनें शिक्षा देवंव

अपन अपन बेटा ला सुधारौ जी

तभे बेटी मनके जीवन सुधरही

बेटा के सुधरे मा समाज सुधरही

बेटा ला सुधारौ जी, बेटा ला सुधारौ जी …

 


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