सफाई कामगार की मौत पर शहीद का दर्जा देने की मांग करने वाले बेहद शातिर हैं या मूर्ख | ऑनलाइन बुलेटिन
©संजीव खुदशाह
परिचय– रायपुर, छत्तीसगढ़
नई दिल्ली | [नेशनल बुलेटिन] | सफाई कामगार की जब भी किसी सीवर में मौत होती है तो सोशल मीडिया में घड़ियाली आंसू बहाने वालों की बाढ़ आ जाती है। कोई उस मृतक को सैनिक शहीद का दर्जा देने की मांग करता है, तो कोई सरकारी नौकरी, तो कोई करोड़ों रुपये देने की मांग करता है। ऐसा कहने वाले लोग 2 प्रकार के हो सकते हैं। ये बेहद शातिर हैं या तो मूर्ख (मैं मूर्ख के बजाय मासूम कहूंगा ताकि बुरा न लगे)।
दरअसल इसे समझने के लिए हमें सामाजिक जटिलता को समझना होगा।
मैंने एक सफाई कामगार से पूछा
? आप सीवर में क्यों उतरते हो ?
क्या करूं और कोई काम नहीं मिलता।
? काम तो बहुत से हैं; रिक्शा चला सकते हो, मजदूरी कर सकते हो?
इसमें मेहनत ज्यादा पैसा कम है साहब।
? लेकिन स्वाभिमान तो है?
चुप …
? क्या आपको कोई ये काम जबरदस्ती करवाता है, इन मैला गड्ढों (सीवर) में उतरने के लिए?
नहीं साहब
? कोई दूसरा काम करने से किसी ने मना किया ?
नहीं, सभी काम करने की छूट है।
? तो ये गंदा काम क्यों करते हो ?
काम 2- 4 घंटे का होता है लेकिन पैसा अच्छा है; फिर दिनभर की फुर्सत।
? कहीं सीवर में मर गये तो, डर नहीं लगता?
मरने की सोचता तो अंदर ही नहीं जाता। रोज का काम है कभी- कभी घटना घट जाती है।
एक बार की बात है, डॉ. आंबेडकर जब बंबई की महार बस्ती को संबोधित करने गए तो उन्हें पता चला की कुछ लोग गंदा पेशा अपनाए हुए हैं। उन्होंने कहा गंदे पेशे हर हाल में छोड़ दो। चाहे कितनी सुविधा या पैसा मिले। गंदा पेशा दलित जातियों के अपमान का कारण है। स्वाभिमानी जातियां मरते मर जाएगी लेकिन गंदा पेशा नहीं अपनाएगी। इसका असर यह हुआ जिन दलित जातियों ने गंदा पेशा छोड़ा वे आज कहीं और पहुंच गई लेकिन सफाई कामगार जातियों के कुछ लोग गंदा पेशा छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
सफाई कामगारों का मुआमला इतना आसान नहीं है। उत्तर भारत में भंगी को भंगी बनाए रखने के लिए वाल्मीकि और सुदर्शन के नाम से संगठन बनाए गए। इन संगठन को बनाने का मुख्य उद्देश्य इन जातियों को डॉ. आंबेडकर से दूर रखने और इनका हिन्दूकरण किया जाना उद्देश्य है। इन्हें मूर्ख बनाने के लिए, कहा जाता है कि ये मार्शल (लड़ाकू) कौम है। क्या कभी किसी मार्शल कौम को पेट की आग बुझाने के लिए सीवर में घुसकर काम करते देखा है? इसी प्रकार छोटे- छोटे संगठन जैसे सफाई मजदूर कांग्रेस, महादलित, अतिदलित आदि के नाम पर बनते गए। सभी ने सफाई काम में सुविधा देने की बात की लेकिन गंदे पेशे से छुटकारा की बात किसी ने नहीं कही। ये सारे संगठन, संस्थाओं (NGO) का वजूद तभी तक है, जब तक की सफाई कामगार हैं। इसलिए इन लोगों ने कभी गंदे पेशे को छोड़ने का कोई आंदोलन नहीं छेड़ा।
ये चाहते हैं कि इनकी सैलरी बढ़ जाए, नौकरी पक्की हो जाए, अनुकंपा नियुक्ति मिले ताकि पीढ़ियां गंदा पेशा करती रहे। गमबूट, किट, दवाई और बोनस मिलता जाए। सीवर में मरने पर शहीद का दर्जा मिले, सैनिक का दर्जा मिले, करोड़ों रुपए का मुआवजा मिले लेकिन काम तो यही गंदा वाला ही करेंगे। अब आप ही बताएं, इतने लोग इस काम को करने के लिए प्रेरित करें, इतनी सारी सुविधाएं मिले तो क्या कभी कोई स्वाभिमानी कौम इस काम को करने से मना करेगी?
वाल्मीकि- सुदर्शन, महादलित, अतिदलित, सफाई मजदूर कांग्रेस पर राजनीति खेलने वाले का अंतिम लक्ष्य होता है, राज्य या केंद्र के सफाई कामगार आयोग में जगह पाना। इनकी सारी लड़ाई, राजनीति इसी के इर्द- गिर्द चलती है। इसलिए ये लोग गंदे काम को छोड़ने का कोई आंदोलन नहीं छेड़ते हैं। डॉ. आंबेडकर के नाम पर इन्हें सांप सूंघ जाता है। इनके सवर्ण आका भी यही चाहते हैं कि वे डॉ. आंबेडकर और आंबेडकर वादियों से नफरत करते रहें। उन्हें हिन्दू विरोधी बताकर ठिकाने लगाया जाए ताकि मैला ढोने वालों की कभी कमी न हो।
आज व्यक्ति चांद तक पहुंच गया है। मंगल की यात्रा की तैयारी है लेकिन सीवर साफ करने के लिए यंत्र नहीं है। न ही इसका आविष्कार किया गया। क्यों हो, भला जब यहां सीवर में उतरने के लिए दलित जो है “मार्सल कौम”। शासन- प्रशासन ने भी कभी सफाई कामगार उन्मूलन के लिए कदम नहीं उठाया। ठेका प्रथा को मैं महत्वपूर्ण मानता हूँ क्योंकि इससे सुविधाएं कम होने के कारण लोग दूसरे काम की ओर रूख कर रहे हैं। प्रशासन को चाहिए की सुविधाएं खत्म करके यंत्रों द्वारा सफाई का काम किया जाए ताकि सफाई कामगार व्यक्ति को मानव निहित जीवन जीने का सम्मान मिल सके।
उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए जो सीवर में मौत को सैनिक की शहादत से जोड़कर एक शहीद सैनिक का अपमान करते हैं। यदि किसी को शहीद का दर्जा पाना है तो वह सीना ठोककर सेना में भर्ती हो जाये लेकिन किसी सैनिक को अपमानित करने का हक उसे नहीं है। जाहिर है इन पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाले लोग फिर भी बाज नहीं आएंगे क्योंकि ये उनकी रोजी- रोटी का सवाल है।