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देश का अनोखा रेलवे स्टेशन ! यहां 1 से 2 नंबर प्लेटफार्म के बीच जाने के लिए लोग लेते हैं रिक्शा, जाने वजह… | Barauni Railway Station

Barauni Railway Station: Amazing Station : ऑनलाइन बुलेटिन डेस्क | There is a large network of railways in India. Railway lines are laid in India till small towns. But do you know that there is a railway station in India where one has to take a rickshaw to go from platform number 1 to platform number two. This is because the distance between the two platforms is 2 kilometers. After listening to the story of this station, you will also start wondering why it is like this when this station is not even 2 kilometers long. It is also special that there is no number one platform at this railway station. Let us know about this strange station.

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : भारत में रेलवे का बड़ा नेटवर्क है. छोटे-छोटे शहरों तक भारत में रेलवे लाइन बिछी हुई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा रेलवे स्टेशन भी है जिसके प्लेटफॉर्म नंबर 1 से दूसरे प्लेटफॉर्म तक जाने के लिए रिक्शा लेना पड़ता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि दो प्लेटफॉर्म के बीच की दूरी 2 किलोमीटर है. इस स्टेशन की कहानी सुनकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि ऐसा क्यों है जबकि ये स्टेशन 2 किलोमीटर लंबा भी नहीं है. ये भी खास बात है कि इस रेलवे स्टेशन पर पहला नंबर का प्लेटफॉर्म नहीं है. आइए इस अजीबोगरीब स्टेशन के बारे में जानते हैं. (Barauni Railway Station)

 

प्लेटफॉर्म बदलने के लिए लेना पड़ता है रिक्शा :

 

बता दें कि कि यह स्टेशन बिहार (Bihar) के बेगूसराय (Begusarai) जिले में है. इस रेलवे स्टेशन का नाम बरौनी (Barauni) है. हैरानी कि बात है कि इस स्टेशन पर ट्रेनें प्लेटफॉर्म नंबर 2 से 9 तक ही चलती हैं. प्लेटफॉर्म नंबर 1 के लिए अनाउंसमेंट कभी नहीं होती है. इस स्टेशन पर प्लेटफॉर्म की शुरुआत प्लेटफॉर्म नंबर 1 से नहीं बल्कि 2 से होती है. अगर कोई प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर जाना चाहता है तो उसे रिक्शा करना पड़ जाता है. इसकी वजह भी दिलचस्प है. (Barauni Railway Station)

 

स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नंबर 1 क्यों नहीं है?

 

बरौनी स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नंबर 1 क्यों नहीं है, पहले यह जान लेते हैं. दरअसल, किया गया था. उस समय एक ही प्लेटफॉर्म बनाया गया था. इसका इस्तेमाल ज्यादातर मालगाड़ियों के लिए होता था. इससे यात्रियों को परेशानी होती थी. स्टेशन बड़ा किया जाता लेकिन जगह कम थी. फिर इसके लिए इस स्टेशन से 2 किलोमीटर दूर नया स्टेशन बनाया गया और उसका नाम भी बरौनी ही रखा गया. लेकिन वहां स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नंबर 1 नहीं बनाया गया. उसकी शुरुआत प्लेटफॉर्म नंबर 2 से किया गया. (Barauni Railway Station)

 

क्यों है 2 प्लेटफॉर्म के बीच की दूरी है 2 किलोमीटर ?

 

जानकारी के अनुसार जब नए प्लेटफॉर्म बनाने की बात आयी तो स्टेशन के पास जमीन काफी कम थी. इसलिए यह निर्णय लिया गया कि इस स्टेशन से कुछ आगे की जमीन पर जंक्शन का विस्तार किया जाए. इसलिए जहां प्लेटफॉर्म नंबर एक है उस जगह से 2 किलोमीटर दूर नए जंक्शन का निर्माण किया गया. बताया जाता है कि जब वहां ये प्लेटफॉर्म बनाए गए तब उस वक्त लोगों को अंदाजा नहीं था कि कभी और भी कई प्लेटफॉर्म बनाने की जरूरत होगी. लेकिन बाद में समय के साथ जरूरत को देखते हुए 2 से 9 नंबर तक प्लेटफार्म बनाए गए.

 

भारत का इकलौता ऐसा रेलवे स्टेशन :

 

बिहार का बरौनी रेलवे स्टेशन देश का इकलौता ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां प्लेटफॉर्म नंबर 2 से शुरू होते थे. अब इसके प्लेटफॉर्म नंबर को बदला दिया गया है. इस रेलवे स्टेशन पर पहले 9 प्लेटफॉर्म हुआ करते थे जो अब 8 तक ही होंगे क्योंकि अब प्लेटफॉर्म की शुरुआत अब नंबर 1 से 8 तक होगी. वहीं, 2 किलोमीटर की दूरी पर बने पुराने प्लेटफॉर्म नंबर 1 वाले रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर न्यू बरौनी कर दिया गया है.

 

तिरहुत स्टेट रेलवे के अंतर्गत 1883 में बना था बरौनी स्टेशन :

 

बता दें कि 1873 में तिरहुत के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने तिरहुत स्टेट रेलवे की स्थापना की. इसी तिरहुत स्टेट रेलवे के अंतर्गत साल 1883 में बरौनी जंक्शन रेलवे स्टेशन का निर्माण हुआ था. उस समय यहां पर एक ही प्लेटफॉर्म होती थी, यहां से विभिन्न रेलमार्गो के लिए ट्रेनें चलती थीं. हालांकि, प्लेटफॉर्म नंबर एक सिर्फ मालगाड़ी के लिए आरक्षित था. ऐसे में इस पर सिर्फ मालगाड़ी खड़ा हुआ करती थी. कुछ समय बाद लोगों ने इसे लेकर शिकायत की, जिसके बाद एक और बरौनी जंक्शन बनाने का निर्णय लिया गया.

 

तिरहुत स्टेट रेलवे की स्थापना कब और क्यों हुई थी :

 

1873 में तिरहुत सरकार महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने तिरहुत स्टेट रेलवे की स्थापना की. यह वो कालखंड था जब बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था और तिरहुत से अनाज जल्द से जल्द बंगाल राहत के लिए भेजना था. समय बेहद कम था, इसलिए काम दिन रात किया गया. तिरहुत से बंगाल तक खाद्यान्न और पशु चारा पहुंचाने के लिए वाजितपुर और दरभंगा के बीच 51 किमी रेल लाइन का निर्माण मात्र 60 दिन में किया गया. इसी रेल लाइन पर पहली बार रेलगाड़ी राहत सामग्री लेने दरभंगा तक आयी थी. इसके बाद यह रेल लाइन इस अविकसित क्षेत्र में परिवहन का प्रमुख माध्यम बनी. (Barauni Railway Station)

 

इंजन लार्ड लारेंस ने 1874 में खींची थी पहली ट्रेन :

 

तिरहुत रेलवे की पहली ट्रेन में जो इंजन लगा था उसका नाम लार्ड लारेंस है. यही इंजन 1874 में पहली ट्रेन खींची थी. इसी इंजन से पहली बार दरभंगा तक राहत सामग्री लेने ट्रेन पहुंची थी. इस इंजन को लंदन से समुद्र के जरिए बड़ी नाव पर रखकर कोलकाता तक लाया गया था. तिरहुत रेलवे की कई वर्षों तक सेवा देने के बाद रेलवे ने गोरखपुर जोनल कार्यालय में इसे संग्रहित कर रखा है. वैसे रेलवे ने कई और इंजनों को संग्रहित कर अपने इतिहास को बचाने का काम किया है.

 

तिरहुत में बिछीं थीं भारत में सबसे अधिक रेलवे की पटरियां

 

समस्तीपुर के पूर्व डीआएम आरके जैन कहते हैं कि 20वीं सदी में भारत में सबसे अधिक रेलवे की पटरियां तिरहुत इलाके में ही बिछाई गयी हैं. यही कारण है कि जुलाई 1890 तक रेल लाइन का विस्तार 491 किमी तक हो गया था. 1875 में दलसिंहसराय से समस्तीपुर, 1877 में समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर, 1883 में मुजफ्फरपुर से मोतिहारी, 1883 में ही मोतिहारी से बेतिया, 1890 में दरभंगा से सीतामढ़ी, 1900 में हाजीपुर से बछवाड़ा, 1905 में सकरी से जयनगर, 1907 में नरकटियागंज से बगहा, 1912 में समस्तीपुर से खगड़िया आदि रेलखंड बनाए गए. (Barauni Railway Station)

 

 

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