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जंगल बचाने की टूटने लगी आस तो अपने प्रिय पेड़ों से लिपटकर महिलाओं ने ऐसे दी विदाई, पढ़ें खबर | ऑनलाइन बुलेटिन

सरगुजा | [छत्तीसगढ़ बुलेटिन] | परसा-केते कोल ब्लॉक एक्सटेंशन की मंजूरी दिए जाने के बाद खदान का खुलना लगभग तय है। पेड़ों की कटाई करने मार्किंग भी शुरू हो गई है। दिल को छू लेने वाली यह तस्वीर सरगुजा के हसदेव अरण्य के जंगलों की है, जहां पेड़ों के साथ पली-बढ़ी महिलाओं व ग्रामीणों ने उन पेड़ों को अंतिम विदाई दी, जिन्हें बचा पाने की उनकी उम्मीदें अब टूटती नजर आ रही हैं। पेड़ों को विदाई देते महिलाओं व ग्रामीणों की आंखों से आंसू भी छलक पड़े।

 

2711 हेक्टेयर के इस कोल ब्लॉक एक्सटेंशन में 1898 हेक्टेयर जमीन फारेस्ट लैंड है। शेष 812 हेक्टेयर जमीन में 3 गांव के ग्रामीणों की भूमि एवं सरकारी जमीन शामिल हैं। राजस्थान के विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित परसा कोल ब्लॉक के डेवलेपमेंट एवं माइनिंग का ठेका अडानी इंटरप्राइसेस के हाथों में है।

 

 

पहले चरण में परसा कोल ब्लाक के 1252 हेक्टेयर क्षेत्र से कोयला उत्खनन की अनुमति दी गई थी। इसमें 841 हेक्टेयर जंगल की भूमि एवं 365 हेक्टेयर भूमि कृषि ग्रामीण इलाके की तथा 45 हेक्टेयर भूमि सरकारी थी। इस ब्लॉक में निर्धारित अवधि 2027 थी, जहां 5 साल पहले 2022 में ही कोल उत्खनन कर लिया गया।

 

2711 हेक्टेयर क्षेत्र में कोल उत्खनन की मंजूरी

 

दूसरे चरण में परसा ईस्ट-केते-बासेन कोल ब्लॉक में कुल 2711 हेक्टेयर क्षेत्र में कोल उत्खनन की मंजूरी दी गई है। इसमें 1898 हेक्टेयर भूमि वनक्षेत्र एवं 812 हेक्टेयर भूमि गैर वनक्षेत्र है। इसमें परसा, हरिहरपुर, फतेहपुर व घाटबर्रा के ग्रामीणों की कृषिभूमि, मकान एवं गांव भी उत्खनन की चपेट में आएंगे। यह पूरा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ है। यहां के ग्रामीणों का जीवन हमेशा जंगलों से जुड़ा रहा है।

 

महुआ, साल, बीज के साथ वनौषधि से भरपूर इस क्षेत्र में लोगों को आजीविका जंगलों से मिलती है। ग्रामीणों का जुड़ाव जंगलों से इतना ज्यादा है कि वे जंगलों को कटने देने को तैयार नहीं हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने राजस्थान में कोयले के संकट का हवाला देकर उत्खनन को मंजूरी दी तब भड़के ग्रामीणों ने अडानी कंपनी के कैंप में आगजनी भी कर दी थी।

 

पेड़ों की कटाई के लिए मार्किंग शुरू

 

परसा ईस्ट-केते-बासेन परियोजना को वर्ष 2019 में ही फारेस्ट क्लीयरेंस मिल चुका है। राज्य सरकार की हरी झंडी मिलने के बाद पेड़ों की कटाई के लिए मार्किंग शुरू कर दी गई है। अर्थ-डे पर ग्रामीण अपने प्रिय पेड़ों के पास पहुंचे एवं उनसे लिपट गए। ग्रामीणों के हौसले टूटे नहीं हैं, लेकिन राज्य सरकार की अनुमति के बाद ना उम्मीदी जरूर आ गई है कि वे अपने प्रिय पेड़ों को शायद न बचा पाएं, इसलिए उनसे लिपटकर उन्हें एक तरह से विदाई दे दी।

 

कांग्रेसी सांसद सहित ग्रामीण विरोध में डटे

 

ग्राम सभा का फर्जी तरीके से प्रस्ताव पास कराने का आरोप लगा कोयला खदान का विरोध कर रहे ग्रामीण 300 किलोमीटर पैदल चलकर राज्यपाल से मिलने भी पहुंचे थे। 2 मार्च से ग्रामीण खदान के विरोध में आंदोलन भी कर रहे हैं। कांग्रेस सांसद ज्योत्सना चरणदास महंत ने भी खदान से जंगल की जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने का हवाला देते हुए केंद्र सरकार से इस परियोजना को निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने आईबीएफआईबीएफआर व डब्लूआईआई की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। यूपीए सरकार में इस क्षेत्र को वर्ष 2010 में नो-गो एरिया घोषित किया गया है।

 

85% ग्रामीणों ने नहीं लिया है मुआवजा

 

परसा के एक्सटेंशन कोल ब्लॉक में निजी जमीनों के अधिग्रहण के लिए मुआवजा प्रकरण तैयार कर लिया गया है। इसमें सिर्फ 15 फीसदी लोगों ने ही अब तक मुआवजे की राशि ली है। हसदेव क्षेत्र बचाओ आंदोलन से जुड़े ग्रामीणों ने बताया कि शेष लोगों ने यह मानकर मुआवजा नहीं लिया है कि वे अपनी जमीनों के साथ जंगलों को भी बचा लेंगे। जंगल कटने से वनांचल के लोगों के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ेगा। वन्यप्राणियों को भी नुकसान होगा।

 


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