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1988 का इतिहास दोहरा पाएंगे सचिन पायलट? 25 MLAs के दम पर राजस्थान में बदल गया था सीएम | ऑनलाइन बुलेटिन

जयपुर | [राजस्थान बुलेटिन] | चल रहे सियासी ड्रामे के बीच यहां सत्ता संघर्ष के पुराने किस्से भी चर्चा में आ रहे हैं। अशोक गहलोत के साथ 92 विधायकों का समर्थन बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाना आसान नहीं होगा। हालांकि, इसी राजस्थान में 87 विधायकों का समर्थन होने के बावजूद कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। यह वाकया हुआ था, साल 1988 में जब हरिदेव जोशी को मात्र 25 विधायकों को समर्थन वाले शिवचरण माथुर के लिए कुर्सी खाली करनी पड़ी थी।

 

अब वर्तमान हालात में सवाल उठ रहा है कि क्या सचिन पायलट 1988 का वो इतिहास दोहरा पाएंगे?

 

क्या हुआ था 1988 में

 

हरिदेव जोशी साल 1988 में राजस्थान के मुख्यमंत्री थे। उस वक्त अशोक गहलोत राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। 1984-85 में राजीव को जबर्दस्त जीत मिली थी। वहीं कई गैर राजस्थानी थे, जिन्होंने राजस्थान से सांसदी जीती थी।

 

इनमें सरदार बूटा सिंह, राजेश पायलट, बलराम जाखड़ समेत कई नाम शामिल थे। सांसदों के इस गुट की अशोक गहलोत और शिवचरण माथुर के साथ अच्छी बनने लगी थी और इन्होंने हरिदेव जोशी को हटाने की मुहिम शुरू कर दी थी।

 

मुख्यमंत्री जोशी के खिलाफ गए थे यह फैक्टर्स

 

1986-87 में राजस्थान में भयानक सूखा पड़ा, वहीं प्रदेश में रूप कंवर सती प्रकरण भी हुआ था। बताया जाता है कि इन दोनों घटनाओं को मुख्यमंत्री जोशी ने जिस तरह से हैंडल किया था, राजीव गांधी उससे खुश नहीं थे। वह खुद भी बोफोर्स और शाह बानो जैसे मुद्दों को लेकर जूझ रहे थे। इन सबके बीच उन्होंने एक कड़ा संदेश देने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने जोशी को सीएम पद से हटाने का फैसला लिया।

 

कांग्रेस के ऑब्जर्वर जीके मूपनार, बी शंकरानंद, एनसी चतुर्वेदी और आरएल भाटिया इस प्रक्रिया के लिए राजस्थान पहुंचे। जोशी कैंप का दावा था कि उनके पास 87 विधायकों का समर्थन है। वहीं नए सीएम के तौर पर जिन शिवचरण माथुर का नाम उभरा उनके पास केवल 25 विधायकों के समर्थन की बात कही जा रही थी। इसके बावजूद हाईकमान के आदेश की बदौलत माथुर को सीएम को गद्दी मिली और जोशी का असम के राज्यपाल का पद संभालने को मजबूर होना पड़ा।

 

इस बार भी कड़ा फैसला लेगा हाईकमान?

 

1988 में हाईकमान पावर में था, इसलिए विधायकों ने आसानी से मान ली, लेकिन वर्तमान में यह कहानी इतनी आसान नहीं नजर आ रही। जिस तरह से गहलोत कैंप के विधायक बागी रुख अख्तियार किए हुए हैं, उससे गुत्थी उलझती नजर आ रही है।

 

ऐसे में सचिन पायलट को इतिहास दोहराने के लिए जहां कई फैक्टर्स पर काम करना होगा। साथ ही उन्हें इस बात की भी उम्मीद करनी होगी कि इतिहास की तरह वर्तमान का हाईकमान भी एक कड़ा फैसला ले।

 

 

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