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शी जिनपिंग की 5 सालों में पहली यूरोप यात्रा, फ्रांस को अपने पाले में लाने की योजना

पेरिस

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग फ्रांस पहुंच गए हैं। बीते 5 सालों में यह पहला मौका है, जब चीन के राष्ट्रपति यूरोप के किसी देश में पहुंचे हैं। इस अहम यात्रा के तहत फ्रांस जाना इसलिए भी अहम है क्योंकि बीते कुछ सालों में भारत के साथ उसके रिश्ते गहरे हुए हैं। ऐसे में भारत से दोस्ती रखने वाले फ्रांस का दौरा करना मायने रखता है। माना जा रहा है कि इसके तहत शी जिनपिंग कोशिश कर सकते हैं कि फ्रांस को चीन के पाले में लाया जाए। पहले भी चीन की ओर से भारत के पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव जैसे देशों को करीब लाने की कोशिश की गई है।

अब यही रणनीति चीन यूरोप तक चलने की कोशिश में है। इस यात्रा के बाद शी जिनपिंग हंगरी और सर्बिया भी जाएंगे। फ्रांस में जिनपिंग की मुलाकात राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से होगी। इसके अलावा यूरोपियन यूनियन के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डे लेयेन से भी वह मुलाकात करेंगे। चीनी मामलों के जानकार मैट गेरासिम ने कहा कि शी जिनपिंग के इस दौरे के तीन मकसद हैं। पहला यह कि यूक्रेन का समर्थन करने से जो रिश्ते खराब हुए हैं। उन्हें ठीक करना है। दूसरा मकसद है- यूरोपियन यूनियन की आर्थिक नीतियों पर बात करना ताकि चीन को लाभ मिल सके। तीसरा, सर्बिया और हंगरी जैसे देशों से रिश्ते मजबूत करना।

इन दोनों देशों ने यूक्रेन पर रूस के हमले का भी विरोध नहीं किया है। इसका समर्थन खुद चीन ने आगे बढ़कर किया है। भारत के नजरिए से बात करें तो शी जिनपिंग का यह दौरा मायने रखता है। राफेल समेत तमाम हथियारों की डील भारत ने फ्रांस के साथ की है। इसके अलावा लोकतंत्र का हवाला देते हुए भी दोनों देश साथ रहे हैं। ऐसे में अब चीन की कोशिश है कि वह यूरोपीय देशों में भी अपनी पैठ बना ले। फिलहाल भारत की फ्रांस, जर्मनी समेत तमाम यूरोपीय देशों में अच्छी गुडविल है।

फ्रांस और चीन के राजनयिक रिश्तों के 60 साल भी पूरे हो रहे हैं। फ्रांस ही वह पहला यूरोपीय देश था, जिसने चीन को मान्यता दी थी। इजरायल और यूक्रेन जैसे दो मोर्चों पर दुनिया जंग में उतरी हुई है। ऐसी स्थिति में भी जिनपिंग का दौरा मायने रखता है। गौरतलब है कि एक तरफ यूक्रेन पर रूसी हमले का चीन ने खुलकर समर्थन किया तो वहीं दूसरी तरफ इजरायल पर गाजा के हमले का वह विरोध कर रहा है।

 


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