जीवन एक पाठशाला | ऑनलाइन बुलेटिन
©अशोक कुमार यादव
परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़
जीवन की पाठशाला में,
प्रतिदिन पढ़ाई होती है।
कोई गुरु बन देता ज्ञान,
हर क्षण कड़ाई होती है।।
कोई है यहां प्रतिभावान,
जो है सबसे कुशाग्र बुद्धि।
बाकी सब कमजोर मानव,
लगे हैं अर्जित करने लब्धि।।
गणित की जादुई खेल खेला,
उलझा चारों संक्रियाओं में।
मानो बचपन से बूढ़ा हो गया,
घिर गया सांप सीढ़ियों में।।
पढ़ता गया प्राण का पहाड़ा,
गिनती की रह गई मेरी उम्र।
अंतिम संस्कार की घड़ी हो,
हाड़,मांस गल गया उड़ा धूम्र।।
कुछ सवालों के घेरे में कैद हूं,
ऊर्जा श्रृंखलाएं हथकड़ियां।
पहने हुए घूम रहा हूं मैदान में,
काला पानी की सजा बेड़ियां।।
अंग्रेजी से जबान लड़खड़ाए,
परतंत्र भारत की दुःख विकराल।
बरस रहे थे कोड़े मेरी बदन पर,
डायर गोलियों की बिछाई जाल।।
कोई कर रहा है नूतन अनुसंधान,
मानव अंगों को फाड़ कर प्रयोग।
निकाल लूंगा शरीर से आत्मा को,
आने वाली पीढ़ी करेंगे उपयोग।।
मातृभाषा की बोली में मिठास है,
जन-जन की बनी माध्यम संचार।
मैं भी बोल लेता हूं टूटी-फूटी हिंदी,
आखिर सीख जाऊंगा करके प्यार।।
बन ऋषि, मुनि करुं मंत्र उच्चारण,
देव वाणी से प्रगट होता भगवान।
तपस्या कर रहा हूं कंटक वन में,
मांग लूंगा सर्व सिद्धि की वरदान।।
सभी विषयों का बनना होगा ज्ञाता,
तभी सफल हो पाऊंगा परीक्षा में।
पहला अध्याय आज से शुरू हुआ,
लक्ष्य हासिल करने दृढ़ हूं इच्छा में।।