भारत मेरी माता है…
©उषा श्रीवास्तव “उषाराज”
घर है गली मोहल्ला या फिर संसद का चौबारा है
जिसको देखो राजनीति में अंतर्मन से हारा है।
भारत कोई खेल नहीं जो रंग महल में नाचेगा
मुकुट शीश पे बांधेगा और विश्व सभा में साजेगा।
अपने हाथों अपना मर्दन बहुत हो चुका बंद करो
मुल्क पड़ोसी से कहती हूं आंख गड़ाना बंद करो।
भारत मेरी माता है यह राजनीति का खेल नहीं
आए कई लुटेरे बनकर उनका कोई मेल नहीं।
नालंदा धूं धूं कर जलती आज भी दिल में रोती है
सोमनाथ लूटा था किसने आंखें क्यों नम होती हैं।
मर्दों में थी मर्द बनी वह अपनी झांसी रानी थी
अंग्रेजों ने तलवा चाटा कीमत को पहचानी थी।
राणा के भाला के आगे शहंशाह शर्मिंदा था
घास की रोटी खाई थी पर भारत दिल में जिंदा था।
जिसको देखो आज यहां पर भारत में जयचंद बना
आंखें ढूंढ रही मेरी क्या कोई विवेकानंद बना।
कश्मीर से ले कन्याकुमारी तक झंडा ये फहरायेगा
गुजरात से ले अरुणाचल तक वो वंदेमातरम गाएगा।
अर्जुन ने गांडीव उठाया शस्त्र उठाना पड़ता है
गीता ज्ञान यही कहती अज्ञान मिटाना पड़ता है।
जब तक रामायण को पढ़कर ज्ञान नहीं तुम पाओगे
सच कहती हूं जीवन में तुम राम नहीं बन पाओगे ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बहुत हो चुका बंद करो
जातिवाद के नाम पे भारत को बंटवाना बंद करो ।
भारत के वीरों ने अपने लहू से इसको सींचा है
मंदिर मस्जिद कह कह के अब आग लगाना बंद करो।
तुम खूनी पंजों में फंसकर खुद को ही नुचवाओगे
समझ समझ के नासमझों तुम भारत समझ ना पाओगे।
मैं भारत के चरणों में अभिनंदन गाने आयी हूं
सबके दिल में प्रेम जगा मैं वंदन गाने आयी हूं।
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