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थोड़ा नटखट …

©राहुल सरोज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश 


 

थोड़ा नटखट सा वो थोड़ा नादान है।

थोड़ा मासूम सा थोड़ा सैतान है।

जब हंसता है वो मानो झरना कोई।

गर रो दे कभी मानो तूफान है।।

थोड़ा नटखट …

 

दिखता उसमें मुझे मेरा बचपन भी है।

वो मेरा अस्क है वो मेरा मन भी है।

उसके संग में दिखें तितलियां खेलती।

मानो बसती उसमें अब मेरी जान है।।

थोड़ा नटखट …

 

वो सबकी आंखों का तारा भी है।

सारे जहां से वो प्यारा भी है।

चलता है तो पग में घुंघरू बजे।

मानो कोई सुरों की वो तान हैं।

थोड़ा नटखट …

 

आंखें उसकी समंदर सी गहरी लगे।

बातें उसकी मनोहर सुनहरी लगे।

करदे पल में वो सारा जहां खुशनुमा।

पल करता सभी को वो हैरान है।

थोड़ा नटखट सा वो थोड़ा नादान है ।


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