राज़दां…

©बिजल जगड
इलाज इस दिल-ए-दर्द-आश्ना का क्या कीजिए,
बहा के सभी उदासियां बेझिझक गले लगाया कीजिए।
न जाने क्या मेरे जख्मों में वो भी देख बैठे है ,
दिल की राख कुरेद कर,चराग़ न जलाया कीजिए।
हमने अपने गम से,दर्द से यूं रिश्ता बहाल रखा है,
वो दिल ही कहां है अब की,जिसे प्यार कीजिए।
वो राज़ ए दिल जो कह न सके राज़दां से हम,
अंधेरे घर में रोशनी,यादों के दीप जलाया कीजिए।
फिर हैं वही उदासियां , फिर वही सूनी काएनात,
आंखों में रात रहे जाए, ख्वाबों में दिखा कीजिए।

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