अमीर | ऑनलाइन बुलेटिन
©सरस्वती राजेश साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
वह अमीर होता सखा, जो धारे मन प्रेम।
स्नेह भाव से पूछ ले, सकल मनुज का क्षेम।।
धैर्य दीन का अस्त्र है, जिन पर टिका शरीर।
साध हृदय संतुष्ट हो, बनता गया अमीर।।
धन से बने अमीर जो, लालच भरे अखण्ड।
सर चढ़ता अभिमान से, लगता जन उद्दण्ड ।।
दीन दुखी को बाँट दे, सेवा धन सहयोग।
जन अमीर मन से भला, हरता गया वियोग।।
भाव अमीर गरीब के, तज दे मन से लोग।
प्राणी लाते भेद को, अनबनता के रोग।।