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ऋतुराज | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव 

परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़ 


 

ऋतुराज की प्रेयसी बड़ी प्रीति,

दसों दिशाओं में फैली हरियाली।

खिल उठे मंजरी डालियों में,

खुशबू बिखेर रही है निराली।।

 

शीतलहर दुबक कर सो गया सेज,

नैसर्गिक की पावन गोद हरित।

श्वेत हिम से ढंका विशाल शिखर,

धरा में प्रवाह किए जीवन अमृत।।

 

कांप उठी नदियों की जल उत्तप्त,

सिहर गए प्राणियों के तन बदन।

घुंघट उठा कर देख रही चिड़िया,

चीं-चीं जीवन गीत गा रही सदन।।

 

खेत सजी है दुल्हन की जैसी,

पहनी है हरे रंग की दिव्य साड़ी।

बदन में सुशोभित रंगीन कुसुम,

खुशबू बिखेर रही कोला बाड़ी।।

 

सरसों पतली कमर वाली सुंदरी,

हवा में नाच रही झूम-झूम कर।

चना बना है सुंदर महा अभिनेता,

बातें कर रहा धरा चूम-चूम कर।।

 

हरिद्राभ वसन धारण किए बसंत,

चला आ रहा है वसुंधरा की ओर।

प्रकृति का कण-कण खिल उठा,

नयी उमंग तरंग से होता भोर।।

 

उल्लासित हैं नर-नारी मुग्ध होकर,

आश्चर्य से देख रहे हैं मनोरम दृश्य।

पशु-पक्षी वेग से दौड़े सुधी खोकर,

स्वर्ग से सुंदर है लौकिक परिदृश्य।।

 

सोने की चमक बिखेरेगा नव कुसुम,

पतझड़ के बाद होगा तरु पल्लवन।

जीर्ण-शीर्ण का होगा फिर पुनरोद्धार,

काया और माया से मिलेगा जीवन।।

 

आम्र की डालियों में मांजर चमकदार,

रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगती।

भर-भर भंवरों की गुंजायमान ध्वनियां,

आओ प्रकृति की गोद चिड़िया कहती।।

 

नयी चेतना जागृत होगा मानव में,

कविराज करेंगे मां शारदे की पूजा।

धूप,अगरबत्ती,फल,माला से वंदना,

विद्या की देवी ज्ञान देगी समुच्चा।।


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