नूर ए खुदा….

©बिजल जगड
कभी जो हर्फ़-ए-दुआ यूँ ज़बाँ तलक आए,
ख्वाब सब होंगे मुकम्मल,दुआ किए जाएँ।
के आयात बुझने न दे कभी उम्मीद के दिए,
हर एक घड़ी हर एक पल,दुआ किए जाएँ।
में जैसे कोई शहर पुराना हजारों बार उजड़ा,
अंदर तलातुम जैसी हलचल,दुआ किए जाएँ।
तन्हाई की पगडंडी, साथ मेरे मेरा खुदा चलता,
ब-ख़ैर अब नई राहें खुलेगी,दुआ किए जाएँ।
सॉस की लय को थामे,खुदा की राह पे निकले,
हज़ारों ने’मतें होती है कबूल,दुआ किए जाएँ।

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